Board – Central Board of Secondary Education, cbse.nic.in
Subject – CBSE Class 10 Hindi A
Year of Examination – 2019.
Solved CBSE Sample Papers for Class 10 Hindi A Set 3
हल सहित सामान्य
निर्देश :
• इस प्रश्न-पत्र में चार खण्ड है – क, ख, ग, घ |
• चारों खण्डों के प्रश्नों के उत्तर देना अनिवार्य है।
• यथासंभव प्रत्येक खण्ड के क्रमशः उत्तर दीजिए |
खण्ड ‘क’ : अपठित बोध
1. निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
किसी भी जीव के शरीर और मानस के सबसे ऊपर मस्तिष्क है। इस मस्तिष्क का स्वभाव कैसे तय होता है? बुद्धि में होने वाले विचार से। इसका मतलब यह है कि किसी भी व्यक्ति के वंशानुगत स्वभाव को उसकी बुद्धि, उसका विवेक बदल सकता है। इसका मतलब यह है कि हमारे बर्ताव, हमारे कर्म पर हमारा वश है, चाहे दुनिया भर पर न भी हो। हम अपने स्वभाव को बदल सकते हैं, अपनी बुद्धि में बारीक बदलाव लाकर। इसके लिए हमें मस्तिष्क की रूप-रेखा पर एक नजर दौड़ानी होगी।
हमारे मस्तिष्क के दो विभिन्न भाग हैं : चेतन और अवचेतन। दोनों ही अलग-अलग प्रयोजनों के लिए जिम्मेदार हैं और दोनों के सीखने के तरीके भी अलग-अलग हैं। मस्तिष्क का चेतन भाग हमें विशिष्ट बनाता है, वही हमारी विशिष्टता है। इसकी वजह से एक व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति से अलग होता है। हमारा कुछ अलग-सा स्वभाव, हमारी कुछ अनोखी सृजनात्मक शक्ति-ये सब मस्तिष्क के इसी हिस्से से संचालित होती हैं, तय होती हैं। हर व्यक्ति की चेतन रचनात्मकता ही उसकी मनोकामना, उसकी इच्छा और महत्वाकांक्षा तय करती है।
इसके विपरीत मस्तिष्क का अवचेतन हिस्सा एक ताकतवर प्रतिश्रुति यंत्र जैसा ही है। यह अब तक के रिकॉर्ड किए हुए अनुभव दोहराता रहता है। इसमें रचनात्मकता नहीं होती। यह उन स्वचालित क्रियाओं और उस सहज स्वभाव को नियंत्रित करता है, जो दुहरा-दुहराकर, हमारी आदत का एक हिस्सा बन चुका है। यह जरूरी नहीं है कि अवचेतन दिमाग की आदतें और प्रतिक्रियाएँ हमारी मनोकामनाओं या हमारी पहचान पर आधारित हों। दिमाग का यह हिस्सा अपने जन्म के थोड़े पहले, माँ के पेट में ही सीखना शुरू कर देता है जैसे जीवन के ‘चक्रव्यूह’ में उतरने से पहले ही ‘अभिमन्यु’ पाठ सीखने लगा हो! यहाँ से लेकर सात साल की उमर तक वे सारे कर्म और आचरण हमारे दिमाग का यह अवचेतन हिस्सा सीख लेता है जो भावी जीवन के लिए मूल आधार हैं।
(i) हम अपने स्वभाव को कैसे परिवर्तित कर सकते हैं?
(ii) हमारे मस्तिष्क के कौन-कौन से भाग होते हैं?
(iii) मस्तिष्क के चेतन भाग का क्या कार्य है?
(iv) अवचेतन मस्तिष्क से क्या अभिप्राय है?
(v) लेखक अभिमन्यु के माध्यम से क्या प्रतिपादित करना चाहता है?
उत्तर-
(i) अपनी बुद्धि में सूक्ष्म परिवर्तन लाकर हम अपने स्वभाव को परिवर्तित कर सकते हैं।
(ii) हमारे मस्तिष्क के दो विभिन्न भाग होते हैं-चेतन और अवचेतन। दोनों ही अलग-अलग प्रयोजनों के लिए जिम्मेदार हैं।
(iii) मस्तिष्क का चेतन भाग हमें विशिष्ट बनाता है। इसकी वजह से एक व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति से अलग होता है। हमारा कुछ अलग-सा स्वभाव, अनोखी सृजनात्मक शक्ति, रचनात्मकता आदि कार्यों की जिम्मेदारी चेतन मस्तिष्क की ही होती है।
(iv) अवचेतन मस्तिष्क एक ताकतवर प्रतिश्रुति यंत्र के समान होता है। यह अब तक के रिकॉर्ड किए अनुभवों को दोहराता है। इसमें रचनात्मकता नहीं होती। यह उन । स्वचालित क्रियाओं और सहज स्वभाव को भी नियंत्रित करता है जो हमारी आदत बन
चुकी
है।
(v) लेखक अभिमन्यु की चर्चा के माध्यम से यह प्रतिपादित करना चाहता है कि अवचेतन मस्तिष्क जन्म के थोड़े पहले, माँ के पेट में ही सीखना शुरु कर देता है।
2. निम्नलिखित काव्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए-
आओ मिले सब देश बांधव हार बनकर देश के
साधक बनें सब प्रेम से सुख शांतिमय उद्देश्य के।
क्या साम्प्रदायिक भेद से है ऐक्य मिट सकता अहो ?
बनती नहीं क्या एक माला विविध सुमनों की कहो।
रक्खी, परस्पर मेल, मन से छोड़कर अविवेकता,
मन का मिलन ही है, होती उसी से एकता।
सब बैर और विरोध का बल-बोध से वारण व री।
है भिन्नता में खिन्नता ही, एकता धारण करो।
है कार्य ऐसा कौन-सा साधे न जिसको एकता,
देती नहीं अद्भुत अलौकिक शक्ति किसको एकता।
दो एक एकादश हुए किसने नहीं देखे सुने,
हाँ, शून्य के भी योग से हैं अंक होते दश गुने।
(i) कवि किस प्रकार देशवासियों से मिलने की बात कर रहा है?
(ii) साम्प्रदायिक विविधता की तुलना किससे की है?
(iii) उपयुक्त पद्यांश का उपयुक्त शीर्षक क्या होगा?
(iv) देशवासियों के लिए एकता को वरेण्य क्यों कहा है?
(v) एकता का विकास करने के लिए क्या करना चाहिए
उत्तर-
(i) कवि विविध पुष्पों के हार के रूप में देशवासियों से मिलने की बात कर रहा है।
(ii) कवि ने साम्प्रदायिक विविधता की तुलना अनेक प्रकार के फूलों से बनी माला से की है।
(iii) उपर्युक्त पद्यांश का शीर्षक होगा-अनेकता में एकता।
(iv) एकता से अलौकिक शक्ति प्राप्त होती है तथा उससे सभी कार्य सिद्ध हो जाते है। इसलिए एकता को वरेण्य कहा गया है।
(v) देशवासियों में एकता का विकास करने के लिए हमें आपस में मेलजोल बनाए रखना चाहिए और मन का अविवेक छोड़कर आपस में मनों का मिलन करना चाहिए।
खण्ड ‘ख’ : व्याकरण
3. निर्देशानुसार उत्तर दीजिए-
(क) ‘मैं दूध पीकर सो गया।’ संयुक्त वाक्य में बदलिये।
(ख) मिश्र वाक्य का एक उदाहरण लिखिए।
(ग) ‘सूर्योदय हुआ और पक्षी बोलने लगे।’ वाक्य का भेद लिखिए।
उत्तर-
(क) मैंने दूध पिया और सो गया।
(ख) आशीष ने कहा कि वह प्रथम आयेगा। (कोई अन्य भी)
(ग) संयुक्त
4. निर्देशानुसार वाच्य-परिवर्तन कीजिए-
(क) हरेन्द्र ने पुस्तक पढ़ ली है। (कर्मवाच्य में)
(ख) वे नहीं खेलते। (भाववाच्य में)
(ग) छात्रों से चुप नहीं बैठा जाता। (कर्तवाच्य में)
(घ) देवेन्द्र द्वारा मेरे लिए पुस्तकें लाई गई। (कर्तृवाच्य में)
उत्तर-
(क) हरेन्द्र द्वारा पुस्तक पढ़ ली गई है ।
(ख) उनसे नहीं खेला जाता।
(ग) छात्र चुप नहीं बैठ सकते।
(घ) देवेन्द्र मेरे लिए पुस्तकें लाया।
5. निम्नांकित वाक्यों में रेखांकित पदों का परिचय दीजिए-
(क) साधु, ने कुटिया बनाई।
(ख) हम बाग में गए, परन्तु वहाँ एक आम भी नहीं मिला।
(ग) मैं धीरे-धीरे चलता हूँ।
(घ) हामिद बड़ी पतंग उड़ा रहा है।
उत्तर-
(क) कुटिया-संज्ञा, जातिवाचक, स्त्रीलिंग, कर्मकारक, एकवचन।
(ख) एक-विशेषण, संख्यावाचक, एकवचन, पुल्लिग, विशेष्य-आम।
(ग) धीरे-धीरे-क्रिया विशेषण (अव्यय), रीतिवाचक, चलना क्रिया की विशेषता बता रहा
(घ) पतंग-संज्ञा, जातिवाचक, स्त्रीलिंग, एकवचन, कर्मकारक
6. निम्नलिखित वाक्यों को निर्देशानुसार परिवर्तित करें
(क) सात्विक अनुभाव कितने प्रकार के होते हैं?
(ख) वीर रस का स्थायी भाव कौन-सा है?
(ग) मन पछितैहै अवसर बीते
दुर्लभ देह पाइ हरिपद भजु करम वचन अरु ही ते॥
इन पंक्तियों में कौन-सा रस है?
(घ) उधर गरजती सिंधु लहरियाँ कुटिल काल के जालों-सी
चली आ रही फेन उगलती फन फैलाए ब्यालों-सी।
इन पंक्तियों में कौन-सा रस है?
उत्तर-
(क) सात्विक अभावों की संख्या 8 मानी गई है,
(ख) उत्साह,
(ग) शांत रस,
(घ) भयानक रस।
खण्ड ‘ग’ : पाठ्यपुस्तक व पूरक पाठ्यपुस्तक
7. निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए-
फादर को याद करना एक उदास शान्त संगीत को सुनने जैसा है। उनको देखना। करुणा के निर्मल जल में स्नान करने जैसा था और उनसे बात करना कर्म के संकल्प से भरना था। मुझे ‘परिमल’ के वे दिन याद आते हैं जब हम सब एक पारिवारिक रिश्ते में बँधे जैसे थे जिसके बड़े फादर बुल्के थे। हमारे हँसी-मजाक में वह निर्लिप्त शामिल रहते, हमारी गोष्ठियों में वह गम्भीर बहस करते, हमारी रचनाओं पर बेबाक राय और सुझाव देते और हमारे घरों के किसी भी उत्सव और संस्कार में वह बड़े भाई और पुरोहित जैसे खड़े हो, हमें अपने आशीषों से भर देते। मुझे अपना बच्चा और
फादर का उसके मुख में पहली बार अन्न डालना याद आता है और नीली आँखों की चमक में तैरता वात्सल्य भी जैसे किसी ऊँचाई पर देवदारु की छाया में खड़े हों।
(क) उत्सव और संस्कार में फादर किसकी भूमिका निभाते थे? |
(ख) फादर से बात करने पर कैसी अनुभूति होती थी?
(ग) करुणा के निर्मल जल में स्नान करने का क्या आशय है?
उत्तर-
(क) उत्सव और संस्कार में फादर बड़े भाई और पुरोहित की भूमिका निभाते थे।
(ख) फादर से बात करने पर कर्तव्य-बोध एवं सुकर्म करने की प्रेरणा की अनुभूति होती थी।
(ग) करुणा के निर्मल जल में स्नान करने का आशय यह है कि फादर की करुणा के स्पर्श से मन अच्छाइयों की ओर प्रेरित होता है।
8. निम्नलिखित प्रश्नों के संक्षिप्त उत्तर दीजिए-
आशय स्पष्ट कीजिए
(क) “बार-बार सोचते, क्या होगा उस कौम का जो अपने देश की खातिर घर-गृहस्थीजवानी-जिंदगी सब कुछ होम कर देने वालों पर भी हँसती है और अपने लिए बिकने के मौके ढूंढती है।”
(ख) लेखक नवाब साहब के जबड़ों के स्फुरण को देखकर क्या अनुभव कर रहे थे? अपने सामने खीरों को देखकर मुँह में पानी आने पर भी उन्होंने खीरे खाने के लिये नवाब साहब के अनुरोध को स्वीकृत क्यों नहीं किया?
(ग) मन्नू भंडारी की ऐसी कौन सी खुशी थी जो 15 अगस्त, 1947 की खुशी में । समाकर रह गई?
(घ) परंपराएँ विकास के मार्ग में अवरोधक हों तो उन्हें तोड़ना ही चाहिए, कैसे? ‘स्त्रीशिक्षा के विरोधी कुतकों का खंडन’ पाठ के आधार पर लिखिए।
उत्तर-
(क) आशय यह है कि ऐसी जाति, वर्ग एवं समुदाय का विकास नहीं हो सकता जो अपने देश के लिए अपना सब कुछ न्यौछावर करने वालों का उपहास उड़ाती है तथा अपने व्यक्तिगत स्वार्थ के लिए अपने आप को बेचने के लिए हमेशा तैयार रहती हैं। अर्थात् वक्त आने पर अपने आप को भी बेच देती हैं। हालदार साहब के इस कथन से वर्तमान युवा पीढ़ी की वास्तविकता की झलक मिलती
है।
(ख) नवाब साहब की वास्तविक स्थिति समझ चुके थे। असलियत भाँप गये, स्वयं मना कर चुके थे अत: मुँह में पानी आने पर भी आत्म-सम्मान की खातिर खीरा नहीं खाया । व्याख्यात्मक हल: लेखक नवाब साहब के जबड़ों के स्फुरण से यह जान गया कि नवाब साहब खीरा खाने को लालायित हो रहे हैं। लेखक नवाब साहब की असलियत भाँप चुका था। लेखक खीरा खाने को पहले मना कर चुका था, इसलिये मुँह में पानी आने पर भी आत्म-सम्मान की खातिर खीरा नहीं खाया ।
(ग) कॉलेज का अनुशासन बिगाड़ने के आरोप में थर्ड इयर की कक्षाएँ बंद कर दी गई और लेखिका और उनकी सहयोगियों का प्रवेश निषिद्ध कर दिया गया। लेकिन छात्राओं के हुड़दंग मचाने पर उन पर लगे प्रतिबंध को हटा दिया गया। यही खुशी स्वतंत्रता मिलने की खुशी में समा गई। व्याख्यात्मक हल: कॉलेज वालों ने शीला अग्रवाल और मन्नू भंडारी की गतिविधियों को देखकर उन्हें कॉलेज से निकाल दिया। इस प्रकार कॉलेज का अनुशासन बिगाड़ने के आरोप में थर्ड इयर की कक्षाएँ बंद कर दी गई और लेखिका और उनकी सहयोगियों का प्रवेश निषिद्ध कर दिया गया, लेकिन कॉलेज से बाहर रहते हुए भी लेखिका और छात्राओं ने इतना हुड़दंग मचाया कि कॉलेज वालों को हार मानकर अगस्त में थर्ड ईयर की कक्षाएँ फिर चालू करनी पड़ीं। यही खुशी स्वतंत्रता मिलने की खुशी में समा गई।
(घ)
• समाज और देश के हित में साहसपूर्वक विरोध प्रदर्शित करके
• चर्चापरक बातचीत द्वारा प्रचार-प्रसार करके
व्याख्यात्मक हल :
विवेदी जी परंपराओं के अन्ध समर्थन के विरोधी थे। उनका दृष्टिकोण उदार और समयानुकूल है। उनके अनुसार जो परंपराएँ व्यक्ति और समाज की प्रगति में बाधक हों उन्हें त्याग देना ही बुद्धिमता है। इसीलिए वे कहते हैं कि पुराने समय में भले ही स्त्रियों को पढ़ाना आवश्यक न समझा गया हो, लेकिन आज स्त्री-शिक्षा आवश्यक हो गई है। इसलिए स्त्रियों को पढ़ाना चाहिए। जब हमने अनेक प्राचीन’ । परंपराओं को हानिकारक या अनुपयोगी होने के कारण तोड़ दिया है तो स्त्रियों को अनपढ़ रखने की अन्यायपूर्ण परंपरा को भी तोड़ देना चाहिए। लेखक का यह अनुरोध उसकी स्वतंत्र और प्रगतिशील विचारधारा का प्रमाण है।
9. निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर संक्षेप में लिखिए-
कितना प्रमाणिक था उसका दुःख
लड़की को दान में देते वक्त
जैसे वही उसकी अंतिम पूँजी हो
लड़की अभी सयानी नहीं थी।
अभी इतनी भोली सरल थी।
कि उसे सुख का आभास तो होता था
लेकिन दुःख बाँचना नहीं आता था
पाठिका थी। वह धुंधले प्रकाश की
कुछ तुकों और कुछ लयबद्ध पंक्तियों की
(क) काव्यांश की भाषा की विशेषता स्पष्ट कीजिए।
(ख) ‘दुख-बाँचने’ से कवि का क्या आशय है?
(ग) इन पंक्तियों को पढ़कर लड़की की जो छवि आपके सामने उभरकर आ रही है, उसे शब्द बद्ध कीजिए।
उत्तर-
(क) काव्यांश में खड़ी बोली के व्यावहारिक रूप का प्रयोग किया गया है।
(ख) ‘दुख-बाँचने’ से कवि का आशय है कि कन्या को वैवाहिक जीवन में आने वाले दुःखों का कोई ज्ञान नहीं था अर्थात् वह विवाहोपंरात आने वाली कठिनाइयों से परिचित नहीं थी।
(ग) इन पंक्तियों को पढ़कर यह स्पष्ट हो जाता है कि लड़की अत्यंत भोली-भाली, सरल तथा ससुराल में मिलने वाले दुःखों के प्रति अनजान है। उसे तो वैवाहिक सुखों के बारे में बस थोड़ा-सा ज्ञान है।
10. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर संक्षेप में लिखिए-
(क) गोपियों के अनुसार प्रीति की नदी में किसने पैर नहीं रखा है और उन्हें उसकी दृष्टि में क्या अभाव दिखाई दे रहा है?
(ख) बालक बसंत को पवन, मोर, तोता और कोयल किस प्रकार खिला और रिझा रहे हैं? स्पष्ट कीजिए।
(ग) कवि अपनी उज्ज्वल चाँदनी रातों वाली गाथा को क्यों नहीं सुनाना चाहते? इससे उनके जीवन के किस पहलू की स्थिति प्रगट होती है? ‘आत्मकथ्य’ कविता के आधार पर लिखिए।
(घ) कविता ‘छाया मत छूना’ में कवि ने कठिन यथार्थ के पूजन की बात किस कारण से की है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
(क) उद्भव ने, रूप तथा प्रेम के रहस्य से अनभिज्ञ तथा अनजान हैं। व्याख्यात्मक हल : गोपियों के अनुसार योग का संदेश देने वाले उद्धव ने प्रेम की नदी में पैर नहीं रखा है। उद्धव कृष्ण के अति निकट रहते हुए भी उनके प्रेम व सौन्दर्य पर मुग्ध नहीं हुए। उद्धव प्रेम के महत्व से अनजान हैं।
(ख) पवन झुला रहा है, मोर-तोता उसे तरह-तरह की बातों से बहला रहे हैं कोकिल नए पत्तों के पालने में लेटे बसंत रूपी बालक को हिला-इलाकर आनंदित और उल्लसित कर रहा है।
(ग) सुखपूर्ण क्षण तथा अच्छे दिन जब वे आनंद में थे। व्याख्यात्मक हल : कवि चाँदनी रातों की गाथा इसलिए नहीं सुनाना चाहता क्योंकि उसके जीवन के सुखपूर्ण क्षण उसके निजी जीवन की पूँजी है और वह उन क्षणों को समाज के साथ नहीं बाँटना चाहता। इससे अतीत के सुखद होने का पता चलता है।
(घ) कठिन यथार्थ ही जीवन का वास्तविक सच है। उससे बच पाना असंभव है। जीवन की वास्तविक परिस्थितियों को झेलना ही पड़ता है अतीत की मधुर यादें या भविष्य के सपने मानव को दुःखी करते हैं अत: कठिन यथार्थ के पूजन की बात कवि ने कही है।
11. ‘जॉर्ज पंचम की नाक’ पाठ में वर्णित खोई हुई नाक से गुजरात के किन-किन महापुरूषों की नाक बड़ी निकली? आप इस कथन के द्वारा कौन-सा भाव ग्रहण करते हैं तथा यह व्यंग्य राष्ट्र के प्रति लेखक की किस भावना का परिचायक है?
उत्तर-
महात्मा गाँधी, सरदार विठ्ठल भाई पटेल, महादेव देसाई जो भारत को आजाद करके देश की प्रतिष्ठा को कायम कर सके। वस्तुत: यह कथन कि इन महापुरुषों की नाक जॉर्ज पंचम की नाक से बड़ी थी इस बात का द्योतक है कि हमारे ये नेता जॉर्ज पंचम से हमारे लिये अधिक सम्मानित हैं। हम विदेशी लोगों के गीत अभी भी गाएँ तो यह उपयुक्त नहीं है। यह व्यंग्य लेखक के दवारा देश के स्वाभिमान के प्रति संवेदनशील होने का परिचायक है।
खण्ड ‘घ’ : लेखन
12. निम्नलिखित में से किसी एक विषय पर दिए गए संकेत-बिन्दुओं के आधार पर लगभग 200-250 शब्दों में निबंध लिखिए:
(क) प्रकृति का प्रकोप
• प्रकृति का दानव स्वरूप
• कारण • समाधान्न
(ख) मुसीबत में ही मित्र की परख होती है।
• अच्छे मित्र की पहचान • मित्र के गुण
• निष्कर्ष
(ग) सांप्रदायिकता एक अभिशाप
• सांप्रदायिकता का अर्थ
• विश्वव्यापी समस्या
• समस्या से मुक्ति।
उत्तर-
(क)
प्रकृति का प्रकोप
• प्रारम्भ और समापन
• विषय-वस्तु (चार बिन्दु अपेक्षित)
• प्रस्तुति और भाषा
प्रकृति का दानव स्वरूप-प्रकृति की रमणीयता और उसका नैसर्गिक सौन्दर्य जहाँ एक ओर बरबस ही हमारे मन को मोह लेता है। प्रकृति की रमणीयता चारों ओर उमड़तीसी दिखाई पड़ती है। वहीं उसका दानव स्वरूप भी है जिसे धारण कर लेने पर चारों ओर विनाश ही विनाश होता है। प्रकृति जब अपने दानव रूप को धारण करके तांडव करती है तो वही मानव मन जो उसके सौन्दर्य को देखकर मोहित हो जाता है, वही थरथर काँपने लगता है। बाढ़, भूकम्प, तूफान, ज्वालामुखी-विस्फोट, सूखा, अतिवृष्टि, अनावृष्टि, बादलों का फटना ये सभी प्रकृति के दानव स्वरूप के प्रतिरूप हैं, जिनके माध्यम से प्रकृति विनाश लीला करती है। उसकी इस विनाश लीला के कारण केवल धन सम्पदा ही नहीं अपितु प्राण सम्पदा (जान भी चली जाती है) जहाँ कहीं भी प्रकृति अपना प्रकोप बरपाती है, वहाँ जीवन संबंधी समस्त सुविधाएँ समाप्त हो जाती
कारण-प्रकृति का प्रकोप या कुदरत का कहर चाहे जिस नाम से पुकारें, आखिर इसका जिम्मेदार है तो स्वयं मनुष्य ही उसने ही इसे ” बुलाया है।
प्रकृति को अपना सुकुमार और नैसर्गिक रूप त्याग करके दानव रूप धारण करने रहा पर मजबूर मनुष्य ने ही किया है। मनुष्य के द्वारा प्रारम्भ से ही अपनी सुखसुविधाओं के लिए प्राकृतिक उपादानों का प्रयोग किया जाता रहा है, किन्तु उस समय वह प्रकृति से छेड़छाड़ नहीं करता था, लेकिन जैस-जैसे वैज्ञानिक युग का प्रारम्भ हुआ और मनुष्य की आवश्यकताएँ बढ़ने लगीं तो उसने प्राकृतिक । संसाधनों का प्रयोग करने के साथ-साथ उसके साथ छोड़छाड़ करना भी आरम्भ कर दिया।
उसने पेड़-पौधे काट-काटकर अपने रहने के लिए निवास बनाने शुरू कर दिए जिसके लिए उसने जंगल के जंगल साफ कर दिए, जिसके कारण प्रकृति का संतुलन डगमगाने लगा। कारखानों-वाहनों के धुएँ ने वायु को, गन्दे रासायनिक तत्वों और गन्दे मल-युक्त जल को स्वच्छ नदियों में मिलाकर जल को दूषित कर दिया। उसके इस कृत्य का परिणाम यह हुआ कि प्रकृति ने भी अपने सुकुमार रूप को त्यागकर दानव रूप धारण कर लिया और समय-समय पर मनुष्य को सबक सिखाने के लिए चारों ओर विनाश किया। जिसका जीता-जागता उदाहरण-उत्तराखंड त्रासदी है। ऐसी भयंकर बाढ़ जिसने वहाँ का सम्पूर्ण जन-जीवन तबाह कर दिया। यह प्रकृति का प्रकोप ही था, जो उसने मनुष्य को सबक सिखाने और उसके साथ छेड़-छाड़ करने के लिए दिखाया था। बढ़ती हुई जनसंख्या और उसकी पूर्ति के लिए प्राकृतिक उपादानों का हद से ज्यादा दुरुपयोग और नाश ही इस विनाशलीला के लिए उत्तरदायी था।
समाधान-यदि मनुष्य प्रकृति के इस प्रकोप से बचना चाहता है तो उसे सोच-समझकर प्रकृति के उपादानों का प्रयोग करना होगा। प्रकृति के संतुलन को कायम रखना होगा। इस सबके लिए सबसे बड़े कारण जनसंख्या के नित-प्रति बढ़ते स्तर को घटाना होगा, जनसंख्या वृद्धि पर नियन्त्रण करना होगा। इसके नियन्त्रित होते ही प्रकृति स्वत: ही शांत होना आरंभ हो जाएगी और अपने दानव स्वरूप को स्वयं में समेटकर पुन: शांत, सुकुमार और रमणीय रूप धारण कर लेगी। अतः हमें चाहिए कि हम अधिकाधिक वृक्ष लगायें, जल और वायु को दूषित होने से रोकें और प्रकृति के तंत्र के साथ छेड़छाड़ न करें।
अथवा
(ख) मुसीबत में ही मित्र की परख होती है।
अच्छे मित्र की पहचान-मित्र की आवश्यकता प्रत्येक व्यक्ति को होती है, किन्तु हमें मित्र का चुनाव सोच-समझकर करना चाहिए। सच्चा मित्र वही होता है जो हमें कुमार्ग से बचाए और गलत रास्ते पर जाते समय सचेत करे कि यह बुराई का रास्ता है। इस पर चलना हमारे लिए ठीक नहीं है। सच्चा मित्र हमारे जीवन की बहुत बड़ी उपलब्धि है क्योंकि वह बुराई से बचाता है और सही रास्ता दिखाता है।
मित्र के गुण-मित्र सच्चे पथ प्रदर्शक की तरह होना चाहिए जिस पर हम पूरा विश्वास कर सकें। मित्र को भाई समान हम अपना स्नेहपात्र बना सकें। हमारे और हमारे मित्र के बीच सच्ची सहानुभूति होनी चाहिए जिसमें एक के हानि-लाभ को दूसरा अपना हानि-लाभ समझे। चापलूसी एवं झूठी प्रशंसा करने वाले सच्चे मित्र नहीं होते। हमें अपने मित्र से यह आशा करनी चाहिए कि वे उत्तम संकल्प से हमें दृढ़ करेंगे और जब हम कुमार्ग पर पैर रखेंगे तब वे हमें सचेत करेंगे। हमारे नैतिक मूल्यों का विकास करने में मित्रों की विशेष भूमिका रहती है।
कुसंग का ज्वर बड़ा भयानक होता है। यदि हमारे मित्र अच्छे नहीं हैं तो उनके दुद्व्यसनों का प्रभाव हमारे ऊपर अवश्य पड़ेगा क्योंकि कुसंग से बच पाना बड़ा कठिन होता है। इसलिए हमें अपने लिए ऐसे मित्र खोजने चाहिए जो शुद्ध हृदय वाले हों और समाज में जिसकी प्रतिष्ठा हो। वे पुरुषार्थी, मृदुभाषी, शिष्ट, सत्यनिष्ठ एवं विश्वासपात्र भी होने चाहिए। निष्कर्ष-युवा पुरुष की संगति अच्छी होने पर उसमें सद्गुणों का विकास होता है। सच्चा मित्र अपने सत्संग से इसमें सहायक बनता है। जो मित्र विपत्ति में साथ देता है वही सच्चा मित्र है कहा गया है-‘विपत्ति कसौटी जे कसे ते ही साँचे मीत।
अथवा
(ग) सांप्रदायिकता: एक अभिशाप
सांप्रदायिकता का अर्थ-साम्प्रदायिकता का सामान्य अर्थ किसी धार्मिक मत-सिद्धान्त को मानने की भावना से है। चूंकि हमारे देश भारत में विभिन्न जातियों-समुदायों के लोग रहते हैं, अत: वे विभिन्न धर्मों और संस्कृतियों एवं मतों-सिद्धान्तों को मानते हैं। इस दृष्टि से वे अपने-अपने धर्मों और सम्प्रदायों को सब प्रकार से श्रेष्ठ और ऊँचा करने का निरन्तर प्रयास करते रहते हैं। इससे साम्प्रदायिकता का भयावह रूप कभी न कभी अवश्य खड़ा हो जाया करता है।
विश्वव्यापी समस्या-स्वाधीनता के बाद हमारे देश में साम्प्रदायिकता का जहर इतना व्यापक स्तर पर फैल चुका है कि लगता है, इसका अंत होना असंभव नहीं तो बहुत ही कठिन अवश्य है। साम्प्रदायिकता का जहर किसी प्रकार के नियंत्रण से बिल्कुल बाहर हो चुका है। यह इस रूप में क्यों हुआ? इस प्रश्न के उत्तर में हम केवल इतना ही कह सकते हैं कि यह शासन-तंत्र और सत्ता के महत्व को न समझ पाने के कारण ही हुआ। सत्तासीन होने के लालच, ललक और लोभ ने साम्प्रदायिकता रूपी विष-वृक्ष का अत्यधिक विस्तार होने दिया।
आज केवल भारत में ही नहीं अपितु सारे विश्व में साम्प्रदायिकता का जहरीला साँप फुसकार रहा है। हर जगह इसी कारण आतंकवाद ने जन्म लिया है। इससे कहीं हिन्दूमुस्लिम में तो कहीं सिक्खों-हिन्दुओं या अन्य जातियों में दंगे-फसाद बढ़ते ही जा रहे हैं। ऐसा इसलिए है कि आज विश्व में प्राय: सभी जातियों और धर्मों ने साम्प्रदायिकता का मार्ग अपना लिया है। इसके पीछे कुछ स्वार्थी राजनीतिक दल और विदेशी तत्व शक्तिशाली रूप से काम कर रहे हैं।
साम्प्रदायिकता का ज्वलन्त उदाहरण अभी हाल में अयोध्या में बाबरी मस्जिद गिरने के सन्दर्भ में मिलता है, जिसमें अनेक लोगों की जानें गयीं और राष्ट्रीय सम्पत्ति का नुकसान हुआ। समस्या से मुक्तिसाम्प्रदायिकता मानवता के नाम पर कलंक है। यदि इस पर यथाशीघ्र विजय नहीं पाई गई तो यह किसी को भी समाप्त करने से बाज नहीं आएगी। साम्प्रदायिकता का जहर कभी उतरता नहीं है। अतएव हमें ऐसा प्रयास करना चाहिए कि यह कहीं किसी तरह से फैले ही नहीं। हमें ऐसा भाव पैदा करना चाहिए
13. अपनी दादी की चित्र-प्रदर्शनी पर अपनी प्रतिक्रिया लिखते हुए उन्हें बधाई-पत्र लिखिए।
उत्तर
पत्र – लेखन
• प्रारूप । औपचारिकताएँ
• विषय – सामग्री
• भाषा
व्याख्यात्मक हल :
रंजना
375, कृष्ण नगर
आगरा। 10 मार्च, 20XX
आदरणीय दादी जी
सादर प्रणाम!
बहुत-बहुत बधाई हो दादी जी! मुझे अभी-अभी दादा जी का टेलीफोन-संदेश मिला। पता चला कि आपने इस वर्ष राष्ट्रीय स्तर पर होने वाली चित्र-प्रदर्शनी में सर्वश्रेष्ठ चित्रकारिता का सम्मान प्राप्त किया है। दादी जी! मुझे ये समाचार सुनकर इतनी प्रसन्नता हुई कि ये खुशी मन में नहीं समा रही। इसलिए सब काम छोड़कर आपको बधाई लिख रही हूँ। मेरी ओर से हार्दिक बधाई! ईश्वर करे आपकी यह कला दिन दूनी रात चौगुनी वृद्धि करे, आप सचमुच इस सम्मान की अधिकारिणी हैं। ईश्वर ने आपको प्रतिभा दी है, तो आपने मेहनत में भी कोई कमी नहीं की है। प्रतिभा और साधना का यह सुफल आपके और हम सबके लिए गौरव की बात है।
मेरी ओर से दादा जी और चाचा जी को भी बधाई देना।
आपकी पौत्री
रंजना
14. मयूर नोबल स्कूल को गणित अध्यापक की आवश्यकता है। इसके लिए 25-50 शब्दों में एक विज्ञापन तैयार कीजिए।
उत्तर-