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By Karan Singh Bisht
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Updated on 12 Nov 2025, 15:39 IST
NCERT Solutions for Class 9 Hindi Kshitij Chapter 3 – उपभोक्तावाद की संस्कृति are included in the complete Class 9 Hindi NCERT Solutions. Here, you’ll find detailed and well-structured answers for all questions from Chapter 3: उपभोक्तावाद की संस्कृति, designed to help students understand the chapter easily and prepare effectively for exams.
| Board | CBSE |
| Textbook | NCERT |
| Class | Class 9 |
| Subject | Hindi Kshitiz |
| Chapter | Chapter 3 |
| Chapter Name | उपभोक्तावाद की संस्कृति |
| Category | NCERT Solutions |
Class 9 Hindi Chapter 3 – उपभोक्तावाद की संस्कृति, written by श्यामाचरण दूबे (Shyama Charan Dube), explores the impact of consumerism on modern society. The lesson discusses how the growing obsession with material goods and advertisements has influenced our social and cultural values.
It shows that people are gradually becoming dependent on consumer culture, prioritizing possessions over genuine happiness and traditional values. The chapter urges readers to recognize the difference between necessities and luxuries, and emphasizes the importance of preserving cultural identity amidst rising materialism.
By using the NCERT Solutions for Class 9 Hindi Kshitij chapter 3, students can clearly grasp the key questions and main themes of each chapter, making their studies easier and more effective. Download the free PDF now to enhance your learning experience.
Class 9 Hindi Chapter 3 उपभोक्तावाद की संस्कृति explains how excessive buying and blindly following advertisements can negatively affect our lives and moral values. The question-answer PDF helps students understand the key ideas and messages of the lesson in a clear and simple manner.
It teaches how to differentiate between real needs and unnecessary desires, helping students grasp the chapter’s moral lessons effectively. This makes exam preparation easier and ensures better retention of important concepts. You can download the Class 9 Hindi Chapter 3 “उपभोक्तावाद की संस्कृति” question-answer PDF below.
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1. लेखक के अनुसार जीवन में ‘सुख’ से क्या अभिप्राय है?
उत्तर: लेखक के अनुसार जीवन में ‘सुख’ का अर्थ केवल उपभोग से मिलने वाला आनंद नहीं है, बल्कि मानसिक, शारीरिक और सूक्ष्म स्तर पर मिलने वाला संतोष और आराम भी ‘सुख’ कहलाता है। परंतु आधुनिक युग में इस अवधारणा का अर्थ बदल गया है। अब लोग केवल भौतिक वस्तुओं के उपभोग और भोग को ही ‘सुख’ मानने लगे हैं।
2. आज की उपभोक्तावादी संस्कृति हमारे दैनिक जीवन को किस प्रकार प्रभावित कर रही है?
उत्तर: उपभोक्तावादी संस्कृति ने हमारे दैनिक जीवन को पूरी तरह प्रभावित कर दिया है। आज का व्यक्ति उपभोग को ही सुख का प्रतीक मानने लगा है। इसके परिणामस्वरूप हमारी सांस्कृतिक पहचान, आस्थाएँ और परंपराएँ धीरे-धीरे कमज़ोर पड़ती जा रही हैं। लोग अधिक से अधिक वस्तुओं का उपभोग करना चाहते हैं और विज्ञापित वस्तुओं को खरीदकर दिखावे को महत्व देने लगे हैं। अब व्यक्ति अपनी प्रतिष्ठा को उपभोग से जोड़कर देखने लगा है। हम जो भी खाते, पहनते या उपयोग करते हैं, वह सब विज्ञापनों के प्रभाव में दिखाई देता है। इस प्रवृत्ति के कारण लोग एक-दूसरे की नकल करते हुए उसी दिशा में आगे बढ़ रहे हैं। परिणामस्वरूप संस्कृति आधारित मानवीय संबंध कमजोर हो रहे हैं और अमीर-गरीब के बीच की दूरी बढ़ती जा रही है, जिससे समाज में असंतोष और आक्रोश बढ़ रहा है।

3. लेखक ने उपभोक्ता संस्कृति को हमारे समाज के लिए चुनौती क्यों कहा है?
उत्तर: गांधीजी सामाजिक मर्यादा और नैतिक मूल्यों के प्रबल समर्थक थे। वे सादा जीवन और उच्च विचार में विश्वास रखते थे। उनका उद्देश्य था कि समाज में आपसी प्रेम, भाईचारा और सामाजिक संवेदना बढ़े तथा लोग सदाचार, संयम और नैतिकता का पालन करें। लेकिन उपभोक्तावादी संस्कृति इन सभी आदर्शों के विपरीत चलती है। यह केवल भोग-विलास को बढ़ावा देती है और नैतिकता तथा मर्यादा को कमजोर करती है। गांधीजी का मानना था कि हमें अपनी संस्कृति और परंपराओं की जड़ों से जुड़ा रहना चाहिए, उन्हें कभी नहीं छोड़ना चाहिए। आज उपभोक्तावाद के प्रभाव में लोग अपनी सांस्कृतिक पहचान खोते जा रहे हैं और स्वार्थी बनते जा रहे हैं। इसी कारण गांधीजी ने उपभोक्तावादी संस्कृति को समाज के लिए एक बड़ी चुनौती बताया था।

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4.1 जाने-अनजाने आज के माहौल में आपका चरित्र भी बदल रहा है और आप उत्पाद को समर्पित होते जा रहे हैं।
उत्तर: उपभोक्तावादी संस्कृति का प्रभाव धीरे-धीरे हमारे जीवन और चरित्र पर दिखाई देने लगा है। यह संस्कृति अधिक से अधिक उपभोग को प्रोत्साहित करती है। पश्चिमी जीवनशैली को बढ़ावा देने और दिखावे पर आधारित होने के कारण समाज के विशेष वर्ग इसे अपनाते हैं और महँगी वस्तुओं के उपयोग को प्रतिष्ठा का प्रतीक मानते हैं। लोग उपभोग को ही जीवन का सच्चा सुख समझने लगते हैं और भौतिक साधनों के पीछे भागते हैं। परिणामस्वरूप, वे उपभोक्तावाद के गुलाम बन जाते हैं और जीवन का वास्तविक उद्देश्य खो बैठते हैं, जिससे उनके चरित्र और नैतिक मूल्यों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
4.2 प्रतिष्ठा के अनेक रूप होते हैं, चाहे वे हास्यास्पद ही क्यों न हो।
उत्तर: प्रतिष्ठा के अनेक रूप होते हैं, जिनमें कुछ अपने आप में ही अत्यंत हास्यस्पद प्रतीत होते हैं। हास्यस्पद का अर्थ है — हँसी का कारण बनने वाला। समाज में लोग अपनी प्रतिष्ठा दिखाने के लिए कई प्रकार के तरीके अपनाते हैं। इनमें से कुछ कार्य अनुकरणीय होते हैं, जबकि कुछ उपहास का विषय बन जाते हैं, जिन्हें देखकर पाठक के चेहरे पर अनायास ही मुस्कान आ जाती है। पश्चिमी देशों में लोग अपने अंतिम संस्कार या विश्राम स्थल के लिए अधिक धन खर्च कर सुंदर स्थान तय करते हैं ताकि वे अपनी झूठी प्रतिष्ठा प्रदर्शित कर सकें। उनका यह व्यवहार वास्तव में अत्यंत हास्यास्पद है।

5. कोई वस्तु हमारे लिए उपयोगी हो या न हो, लेकिन टी.वी. पर विज्ञापन देखकर हम उसे खरीदने के लिए अवश्य लालायित होते हैं? क्यों ?
उत्तर: विज्ञापनों का प्रभाव बहुत सूक्ष्म और आकर्षक होता है। उनकी भाषा ऐसी होती है जो लोगों को अपनी ओर खींच लेती है। ये विज्ञापन चित्रों और ध्वनियों के माध्यम से हमारी आँखों और कानों पर गहरा प्रभाव डालते हैं। वे हमारे मन में वस्तुओं के प्रति एक झूठा आकर्षण पैदा कर देते हैं। विशेष रूप से बच्चे इनके मोह से बच नहीं पाते। हम अक्सर वही चीजें खरीदते हैं जिन्हें विज्ञापनों में दिखाया जाता है, इसलिए कई बार अनुपयोगी वस्तुएँ भी हमें लुभा लेती हैं और हम उन्हें खरीदने के लिए उत्सुक हो जाते हैं।
6. आपके अनुसार वस्तुओं को खरीदने का आधार वस्तु की गुणवत्ता होनी चाहिए या उसका विज्ञापन? तर्क देकर स्पष्ट करें।
उत्तर: हमारे विचार से वस्तुओं को खरीदने का आधार उनकी गुणवत्ता होनी चाहिए, विज्ञापन नहीं, क्योंकि —
इसलिए हमें अपनी बुद्धि और विवेक का उपयोग करते हुए, ज़रूरत के अनुसार और वस्तु की गुणवत्ता देखकर ही खरीदारी करनी चाहिए।
7. पाठ के आधार पर आज के उपभोक्तावादी युग में पनप रही ‘दिखावे की संस्कृति’ पर विचार व्यक्त कीजिए।
उत्तर: आजकल समाज में दिखावे की संस्कृति तेजी से फैल रही है, और यह बिल्कुल सत्य है। आधुनिक समय में लोग दूसरों से अलग दिखने की चाह में महंगे सौंदर्य प्रसाधन, मोबाइल फोन, घड़ियाँ, म्यूज़िक सिस्टम और फैशनेबल कपड़े खरीदते हैं, क्योंकि अब व्यक्ति की पहचान उसके वस्त्रों और वस्तुओं से आँकी जाने लगी है। लोग वही चीजें अपनाते हैं, जिन्हें समाज “आकर्षक” या “प्रतिष्ठित” मानता है। नए-नए परिधान और ब्रांडेड वस्त्र इस दिखावे की प्रवृत्ति को और बढ़ावा दे रहे हैं।
स्थिति इतनी बढ़ गई है कि लोग अब मरने के बाद अपनी कब्र या समाधि पर भी लाखों रुपये खर्च करते हैं ताकि समाज में उनकी प्रतिष्ठा बनी रहे — यह दिखावे की संस्कृति की चरम सीमा है। इसके अनेक दुष्परिणाम सामने आ रहे हैं। इससे मनुष्य का चरित्र, संस्कृति और आस्था धीरे-धीरे कमजोर हो रहे हैं। सामाजिक संबंध टूट रहे हैं, मन में अशांति और असंतोष बढ़ रहा है। नैतिक मूल्यों में गिरावट आ रही है और समाज में स्वार्थ, भोगवाद तथा व्यक्तिवाद जैसी नकारात्मक प्रवृत्तियाँ फैल रही हैं।
8. आज की उपभोक्ता संस्कृति हमारे रीति-रिवाजों और त्योहारों को किस प्रकार प्रभावित कर रही है? अपने अनुभव के आधार पर एक अनुच्छेद लिखिए।
उत्तर: आज की उपभोक्ता संस्कृति ने हमारे रीति-रिवाजों और त्योहारों पर गहरा प्रभाव डाला है। अब त्योहारों का अर्थ बदल गया है — ये एक-दूसरे से बेहतर दिखने की प्रतिस्पर्धा का माध्यम बन गए हैं। विभिन्न कंपनियाँ ऐसे अवसरों का इंतज़ार करती हैं ताकि त्योहारों के नाम पर विज्ञापनों के ज़रिए अधिक से अधिक ग्राहकों को आकर्षित कर सकें। पहले त्योहारों में सभी पारिवारिक सदस्य मिलकर तैयारियाँ करते थे, पर अब ज़्यादातर चीज़ें बाज़ार से तैयार खरीदी जाती हैं, और बाकी काम नौकरों से करवाए जाते हैं।
9. 'धीरे-धीरे सब कुछ बदल रहा है।'
इस वाक्य में बदल रहा है क्रिया है। यह क्रिया कैसे हो रही है-धीरे-धीरे। अतः यहाँ धीरे-धीरे क्रिया-विशेषण है। जो शब्द क्रिया की विशेषता बताते हैं, क्रिया-विशेषण कहलाते हैं। जहाँ वाक्य में हमें पता चलता है क्रिया कैसे, कितनी और कहाँ हो रही है, वहाँ वह शब्द क्रिया-विशेषण कहलाता है।
(क) ऊपर दिए गए उदाहरण को ध्यान में रखते हुए क्रिया-विशेषण से युक्त लगभग पाँच वाक्य पाठ में से छाँटकर लिखिए।
उत्तर:
(ख) धीरे-धीरे, जोर से, लगातार, हमेशा, आजकल, कम, ज्यादा, यहाँ, उधर, बाहर-इन क्रिया-विशेषण शब्दों को प्रयोग करते हुए वाक्य बनाइए।
उत्तर:
1. कल रात से निरंतर बारिश हो रही है।
उत्तर:
निरंतर - रीतिवाचक क्रिया-विशेषण
कल रात - कालवाचक क्रियाविशेषण
2. पेड़ पर लगे पके आम देखकर बच्चों के मुँह में पानी आ गया।
उत्तर:
पके - विशेषण
मुँह में - स्थानवचकक्रिया - विशेषण
3. रसोईघर से आती हल्की पुलाव की खुशबू से मुझे ज़ोरों की भूख लग गई।
उत्तर:
हलकी - विशेषण
जोरों की - रीतिवाचक क्रिया-विशेषण
4. उतना ही खाओ जितनी भूख है।
उत्तर: उतना, जितनी (परिमाणवाचक क्रिया-विशेषण)
5. विलासिता की वस्तुओं से आजकल बाजार भरा पड़ा है।
उत्तर: आजकल (कालवाचक क्रिया-विशेषण) बाज़ार (स्थानवाचक क्रिया-विशेषण)
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The main message of “Upbhoktavad Ki Sanskriti” is that excessive consumerism and materialism weaken our values, relationships, and cultural identity. The lesson teaches us to differentiate between needs and desires and warns against becoming slaves to advertisements and luxury. It encourages students to live a balanced life based on simplicity, ethics, and satisfaction, rather than endless consumption.
Infinity Learn’s NCERT Solutions explain every question and concept in simple language, making it easy for students to grasp the core ideas of consumerism and social change. The solutions include summaries, word meanings, and model answers that help in revision and exam preparation. Students can also download a free PDF for quick study and practice.
Culture of Show-off refers to the growing habit of people buying and displaying things just to impress others, not because they need them. While writing answers about this topic, students should focus on how consumerism promotes artificial lifestyles, mention examples from the lesson, and explain its impact on moral and social values. Keeping the tone factual and balanced helps earn better marks.
The author, Shyama Charan Dube, points out that consumer culture makes people self-centered, competitive, and less compassionate. It shifts focus from values and relationships to money and material goods. This lifestyle reduces true happiness, increases social inequality, and leads to loss of traditional culture and spiritual satisfaction.
Yes, NCERT Solutions for Upbhoktavad Ki Sanskriti are sufficient for CBSE exams if studied carefully. They follow the latest CBSE syllabus (2025–26) and include chapter summaries, textual questions, grammar practice, and value-based answers. Students should, however, also revise the chapter summary and practice previous years’ questions for best results.
You can find all question-answers for Class 9 Hindi Kshitij Chapter 3 – Upbhoktavad Ki Sanskriti on trusted educational platforms like Infinity Learn and NCERT’s official website. These provide free PDFs, detailed chapter explanations, and exam-focused notes that help students revise the lesson easily.