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Unseen Passage for Class 11 in Hindi

Understanding and practicing unseen passage for class 11 is essential for students aiming to excel in their examinations. An unseen passage for class 11 in Hindi not only helps students improve their reading comprehension but also enhances their ability to analyze and interpret the content. Whether it’s an unseen passage class 11 exam or a class assignment, these passages are designed to test a student’s understanding of the language and their ability to derive meaning from a text they have not seen before.

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    The importance of mastering unseen passage class 11 Hindi lies in the fact that it prepares students for various competitive exams and helps them build a strong foundation in the language. By regularly practicing with unseen passage for class 11 in Hindi, students can become more proficient in quickly grasping the main ideas, identifying key details, and answering questions accurately. This practice also helps in improving vocabulary, sentence structure, and overall language skills.

    In Class 11, the unseen passage class 11 section is a crucial part of the curriculum, as it challenges students to think critically and develop their interpretive skills. Teachers often emphasize the need for continuous practice with unseen passage for class 11 in Hindi to ensure students are well-prepared for their exams. With consistent effort and practice, students can easily tackle any unseen passage class 11 Hindi they encounter, boosting their confidence and performance in the subject.

    Therefore, focusing on unseen passage for class 11 is a key step in enhancing language proficiency and achieving academic success. Regular practice of unseen passage for class 11 in Hindi will ensure students are equipped with the necessary skills to excel in their exams and beyond.

    Unseen Passage for Class 11 in Hindi

    Unseen Passage for Class 11 Hindi

    Below, we’ve included various unseen passages suitable for Class 11 learners. Working through these passages will assist students in quickly comprehending written texts. They’ll also learn how to tackle a range of questions found in passages. By practicing with these unseen passages, Class 11 students can boost their confidence in handling challenging texts.

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    Unseen Passage for Class 11 Hindi अपठित गद्यांश – Passage 1

    लोकतंत्र के तीनों पायों-विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका का अपना-अपना महत्त्व है, किंतु जब प्रथम दो अपने मार्ग या उद्देश्य के प्रति शिथिल होती हैं या संविधान के दिशा-निर्देशों की अवहेलना करती हैं, तो न्यायपालिका का विशेष महत्त्व हो जाता है। न्यायपालिका ही है जो हमें आईना दिखाती है, किंतु आईना तभी उपयोगी होता है, जब उसमें दिखाई देने वाले चेहरे की विद्रूपता को सुधारने का प्रयास हो।

    सर्वोच्च न्यायालय के अनेक जनहितकारी निर्णयों को कुछ लोगों ने न्यायपालिका की अतिसक्रियता माना, पर जनता को लगा कि न्यायालय सही है। राजनीतिक चश्मे से देखने पर भ्रम की स्थिति हो सकती है। प्रश्न यह है कि जब संविधान की सत्ता सर्वोपरि है, तो उसके अनुपालन में शिथिलता क्यों होती है। राजनीतिक-दलगत स्वार्थ या निजी हित आड़े आ जाता है और यही भ्रष्टाचार को जन्म देता है।

    हम कसमें खाते हैं जनकल्याण की और कदम उठाते हैं आत्मकल्याण के। ऐसे तत्वों से देश को, समाज को सदा खतरा रहेगा। अतः जब कभी कोई न्यायालय ऐसे फैसले देता है, जो समाज कल्याण के हों और राजनीतिक ठेकेदारों को उनकी औकात बताते हों, तो जनता को उसमें आशा की किरण दिखाई देती है। अन्यथा तो वह अंधकार में जीने को विवश है ही।

    प्रश्नः 1. गद्यांश के लिए उपयुक्त शीर्षक दीजिए।

    उत्तर: शीर्षक-लोकतंत्र और न्यायपालिका।

    प्रश्नः 2. लोकतंत्र में न्यायपालिका कब विशेष महत्त्वपूर्ण हो जाती है? क्यों?

    उत्तर: लोकतंत्र में न्यायपालिका तब महत्त्वपूर्ण हो जाती है जब विधायिका और कार्यपालिका अपने मार्ग या उद्देश्य के प्रति शिथिल होती है या संविधान के दिशानिर्देशों की अवहेलना होती है।

    प्रश्नः 3. आईना दिखाने का तात्पर्य क्या है ? और न्यायपालिका कैसे आईना दिखाती है?

    उत्तर: ‘आईना दिखाने’ से तात्पर्य है-असलियत बताना। न्यायपालिका अपने निर्णयों से कार्यपालिका व विधायिका को उनकी सीमाओं व कर्तव्यों का स्मरण कराती है।

    प्रश्नः 4. ‘चेहरे की विद्रूपता’ से क्या तात्पर्य है और यह संकेत किनके प्रति किया गया है?

    उत्तर: इसका तात्पर्य है कि चेहरे पर ओढ़ा हुआ कुटिल उपहास। कार्यपालिका व विधायिका जनकल्याण के नाम कार्य करके अपने हित साधती हैं।

    प्रश्नः 5. भ्रष्टाचार का जन्म कब और कैसे होता है ?

    उत्तर: भ्रष्टाचार का जन्म तब होता है जब राजनीतिक दल स्वार्थ या निजी हित के चक्कर में जनकल्याण के नाम पर आत्मकल्याण के कार्य करते हैं।

    प्रश्नः 6. जनता को आशा की किरण कहाँ और क्यों दिखाई देती है?

    उत्तर: जनता को आशा की किरण न्यायपालिका से दिखाई देती है क्योंकि न्यायालय ही समाज कल्याण के फैसले लेकर राजनीतिक ठेकेदारों को उनकी औकात बताते हैं।

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    Unseen Passage for Class 11 Hindi अपठित गद्यांश – Passage 2

    शिक्षा के क्षेत्र में पुनर्विचार की आवश्यकता इतनी गहन है कि अब तक बजट, कक्षा, आकार, शिक्षक-वेतन और पाठ्यक्रम आदि के परंपरागत मतभेद आदि प्रश्नों से इतनी दूर निकल गई है कि इसको यहाँ पर विवेचित नहीं किया जा सकता। द्वितीय तरंग दूरदर्शन तंत्र की तरह (अथवा उदाहरण के लिए धूम्र भंडार उद्योग) हमारी जनशिक्षा प्रणालियाँ बड़े पैमाने पर प्रायः लुप्त हैं। बिलकुल मीडिया की तरह शिक्षा में भी कार्यक्रम विविधता के व्यापक विस्तार और नये मार्गों की बहुतायत की आवश्यकता है।

    केवल आर्थिक रूप से उत्पादक भूमिकाओं के लिए ही निम्न विकल्प पद्धति की जगह उच्च विकल्प पद्धति को अपनाना होगा यदि नई थर्ड वेव सोसायटी में शिष्ट जीवन के लिए विद्यालयों में लोग तैयार किए जाते हैं। शिक्षा और नई संचार प्रणाली के छह सिद्धांतों-पारस्परिक क्रियाशीलता, गतिशीलता, परिवर्तनीयता, संयोजकता, सर्वव्यापकता और सार्वभौमिकरण के बीच बहुत ही कम संबंध खोजे गए हैं।

    अब भी भविष्य की शिक्षा पद्धति और भविष्य की संचार प्रणाली के बीच संबंध की उपेक्षा करना उन शिक्षार्थियों को धोखा देना है जिनका निर्माण दोनों से होना है। सार्थक रूप से शिक्षा की प्राथमिकता अब मात्र माता-पिता, शिक्षकों एवं मुट्ठी भर शिक्षा सुधारकों के लिए ही नहीं है, बल्कि व्यापार के उस आधुनिक क्षेत्र के लिए भी प्राथमिकता में है जब से वहाँ सार्वभौम प्रतियोगिता और शिक्षा के बीच संबंध को स्वीकारने वाले नेताओं की संख्या बढ़ रही है। दूसरी प्राथमिकता कंप्यूटर वृद्धि, सूचना तकनीक और विकसित मीडिया के त्वरित सार्वभौमीकरण की है।

    कोई भी राष्ट्र 21वीं सदी के इलेक्ट्रॉनिक आधारिक संरचना, एंब्रेसिंग कंप्यूटर्स, डाटा संचार और अन्य नवीन मीडिया के बिना 21वीं सदी की अर्थव्यवस्था का संचालन नहीं कर सकता। इसके लिए ऐसी जनसंख्या की आवश्यकता है जो इस सूचनात्मक आधारिक संरचना से परिचित हो, ठीक उसी प्रकार जैसे कि समय के परिवहन तंत्र और कारों, सड़कों, राजमार्गों, रेलों से सुपरिचित है।

    वस्तुतः सभी के टेलीकॉम इंजीनियर अथवा कंप्यूटर विशेषज्ञ बनने की ज़रूरत नहीं है, जैसा कि सभी के कार मैकेनिक होने की आवश्यकता नहीं है, परंतु संचार प्रणाली का ज्ञान कंप्यूटर, फैक्स और विकसित दूर संचार को सम्मिलित करते हुए उसी प्रकार आसान और मुफ्त होना चाहिए जैसा कि आज परिवहन प्रणाली के साथ है। अत: विकसित अर्थव्यवस्था चाहने वाले लोगों का प्रमुख लक्ष्य होना चाहिए कि सर्वव्यापकता के नियम की क्रियाशीलता को बढ़ाया जाए-वह है, यह निश्चित करना कि गरीब अथवा अमीर सभी नागरिकों को मीडिया की व्यापक संभावित पहुँच से अवश्य परिचित कराया जाए।

    अंततः यदि नई अर्थव्यवस्था का मूल ज्ञान है तब सतही बातों की अपेक्षा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का लोकतांत्रिक आदर्श सर्वोपरि राजनीतिक प्राथमिकता बन जाता है।

    प्रश्नः 1. उपयुक्त शीर्षक दीजिए।

    उत्तर: शीर्षक-शिक्षा पर पुनर्विचार की ज़रूरत।

    प्रश्नः 2. लेखक का मुख्य उद्देश्य क्या है?

    उत्तर: इस अंश में लेखक ज्ञान, अर्थव्यवस्था और संचार माध्यमों के बीच नए गठबंधन के लिए तर्क प्रस्तुत करना चाहता है।

    प्रश्नः 3. इस गद्यांश का मूल विषय क्या है?

    उत्तर: इस गद्यांश का मूल विषय शिक्षा, सूचना-तकनीक और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है।

    प्रश्नः 4. सर्वव्यापकता का अर्थ बताइए।

    उत्तर: सर्वव्यापकता के सिद्धांत का अर्थ है-सभी के लिए माध्यमों की उपलब्धि।

    प्रश्नः 5. शिक्षा की प्राथमिकता किन-किन के लिए है?

    उत्तर: शिक्षा की प्राथमिकता माता-पिता, शिक्षकों, शिक्षा सुधारकों, व्यापार के आधुनिक क्षेत्रों में है।

    प्रश्नः 6. आज कैसी संचार प्रणाली का ज्ञान होना चाहिए।

    उत्तर: आज ऐसी संचार प्रणाली का ज्ञान होना आवश्यक है जो व्यावहारिक कार्य जैसे कंप्यूटर, फैक्स आदि कर सके।

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    Unseen Passage for Class 11 in Hindi अपठित गद्यांश – Passage 3

    सभी मनुष्य स्वभाव से ही साहित्य-स्रष्टा नहीं होते, पर साहित्य-प्रेमी होते हैं। मनुष्य का स्वभाव ही है सुंदर देखने का। घी का लड्डू टेढ़ा भी मीठा ही होता है, पर मनुष्य गोल बनाकर उसे सुंदर कर लेता है। मूर्ख-से-मूर्ख हलवाई के यहाँ भी गोल लड्डू ही प्राप्त होता है; लेकिन सुंदरता को सदा-सर्वदा तलाश करने की शक्ति साधना के द्वारा प्राप्त होती है। उच्छृखलता और सौंदर्य-बोध में अंतर है।

    बिगड़े दिमाग का युवक परायी बहू-बेटियों के घूरने को भी सौंदर्य-प्रेम कहा करता है, हालाँकि यह संसार की सर्वाधिक असुंदर बात है। जैसा कि पहले ही बताया गया है, सुंदरता सामंजस्य में होती है और सामंजस्य का अर्थ होता है, किसी चीज़ का बहुत अधिक और किसी का बहुत कम न होना। इसमें संयम की बड़ी ज़रूरत है। इसलिए सौंदर्य-प्रेम में संयम होता है, उच्छृखलता नहीं।

    इस विषय में भी साहित्य ही हमारा मार्ग-दर्शक हो सकता है। जो आदमी दूसरों के भावों का आदर करना नहीं जानता उसे दूसरे से भी सद्भावना की आशा नहीं करनी चाहिए। मनुष्य कुछ ऐसी जटिलताओं में आ फँसा है कि उसके भावों को ठीक-ठीक पहचानना हर समय सुकर नहीं होता। ऐसी अवस्था में हमें मनीषियों के चिंतन का सहारा लेना पड़ता है। इस दिशा में साहित्य के अलावा दूसरा उपाय नहीं है।

    मनुष्य की सर्वोत्तम कृति साहित्य है और उसे मनुष्य पद का अधिकारी बने रहने के लिए साहित्य ही एकमात्र सहारा है। यहाँ साहित्य से हमारा मतलब उसकी सब तरह ही सात्त्विक चिंतन-धारा से है।

    प्रश्नः 1. गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक दीजिए।

    उत्तर: शीर्षक-साहित्य और सौंदर्य-बोध।

    प्रश्नः 2. साहित्य स्रष्टा और साहित्य प्रेमी से क्या तात्पर्य है?

    उत्तर: साहित्य स्रष्टा वे व्यक्ति होते हैं जो साहित्य का सृजन करते हैं। साहित्य प्रेमी साहित्य का आस्वादन करते हैं।

    प्रश्नः 3. लड्डू का उदाहरण क्यों दिया गया है?

    उत्तर: लेखक ने लड्डू का उदाहरण मनुष्य के सौंदर्य प्रेम के संदर्भ में दिया है। लड्डू की तासीर मीठी होती है चाहे वह गोल हो या टेढ़ा-मेढ़ा परंतु मनुष्य उन्हें गोल बनाकर उसके सौंदर्य को बढ़ा देता है।

    प्रश्नः 4. लेखक ने संसार की सबसे बुरी बात किसे माना है और क्यों?

    उत्तर: लेखक ने संसार की सबसे बुरी बात परायी बहू-बेटियों को घूरना बताया है क्योंकि यह सौंदर्य बोध के नाम पर उच्छृखलता है।

    प्रश्नः 5. जीवन में संयम की ज़रूरत क्यों है ?

    उत्तर: जीवन में संयम की ज़रूरत है क्योंकि संयम से ही सामंजस्य का भाव उत्पन्न होता है जिससे मनुष्य दूसरों की भावना का आदर कर सकता है।

    प्रश्नः 6. हमें विद्वानों के चिंतन की आवश्यकता क्यों पड़ती है?

    उत्तर: हमें विद्वानों के चिंतन की आवश्यकता पड़ती है क्योंकि जीवन की जटिलताओं में फँसने के कारण हम दूसरे के भावों को सही से नहीं समझ पाते। साहित्य ही इस समस्या का समाधान है।

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