Table of Contents
Lost Spring Class 12 Summary In English
Anees Jung’s ‘Lost Spring’ is taken from her book ‘Lost Spring, Stories of Stolen Childhood’. It explores the lives of impoverished children. This section shares the experiences of two children who, despite facing pervasive poverty, dare to dream big. Anees Jung herself narrates both stories.
‘Sometimes I Find a Rupee in the Garbage’
The story introduces us to Saheb, a ragpicker the narrator sees every morning. Through conversations, she learns that Saheb’s family moved from Dhaka after a storm destroyed their home. She suggests that he should attend school, but he says there are no schools nearby. The narrator promises to start a school for him, a promise that lights up Saheb’s face. However, she later realizes such promises are often unfulfilled.
The narrator describes the harsh realities of life for children in extreme poverty. She questions if walking barefoot is truly a tradition or just an excuse to overlook their ongoing poverty. She recalls a man from Udipi who prayed for shoes as a child. Decades later, she notices children in his hometown wearing shoes, showing that some prayers do get answered.
The background of Saheb is also highlighted. He and other ragpickers settled in Seemapuri, near Delhi, after fleeing Bangladesh in 1971. They lack formal identities but have ration cards, which only help them get food and vote. Ragpicking has become their skill. For Saheb, finding money is a significant achievement. One day, he’s seen wearing tennis shoes with a hole, fulfilling his simple dream. Later, Saheb starts working at a tea stall. Though he earns a wage and gets meals, he seems unhappy, missing the freedom he once had.
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‘I Want to Drive a Car’
This passage discusses the difficult life of bangle makers in Firozabad. The author describes how poverty affects the homes and streets of these makers. Mukesh, a young boy from Firozabad, shows the narrator his home, revealing the harsh working conditions. They work near hot furnaces without proper air or light, which is illegal for children.
The author notes that bangle making is a skill passed down through generations in a specific caste. Despite whole families working in the bangle factory, they remain poor and unable to build proper houses. This is true for many others in the area as well. The struggle to afford three meals a day has left them feeling helpless.
When asked why they don’t form a cooperative to improve their situation, they fear being punished by the police. Their ancestors were exploited by middlemen, and now they suffer the consequences. Poverty and the stigma of their caste keep them down. The author highlights a cycle of oppression involving lenders, police, and middlemen, which prevents them from improving their lives.
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Due to these challenges, no one dares to leave this profession or break free from poverty. Mukesh dreams of becoming a motor mechanic, showing a spark of rebellion. When asked about being a pilot, he feels it’s beyond his reach and is content dreaming of being a motor mechanic
Lost Spring Class 12 Summary In Hindi
I. “कभी-कभी मुझे कूड़े के ढेर में एक रुपया मिल जाता है।
लेखिका की प्रतिदिन साहेब से भेंट होती है। वर्षों पहले साहेब बांग्लादेश में अपना घर छोड़कर आ गया था। वह पड़ोस में कूड़े के ढेरों से सोना खंगालने का प्रयास कर रहा होता है। लेखिका साहेब से पूछती है कि वह ऐसा क्यों करता है। साहेब बड़बड़ाता है कि उसके पास करने को और कुछ नहीं है। उसके पड़ोस में कोई विद्यालय नहीं है। वह निर्धन है तथा नंगे पैर काम करता है।
साहेब जैसे अन्य 10,000 जूतेविहीन कूड़े के ढेर में से कबाड़ उठाने वाले हैं। ये लोग दिल्ली के बाहरी किनारे पर सीमापुरी में रहते हैं- मिट्टी के घरौंदों में, जिन पर टीन या तिरपाल की छत है किन्तु वे मल-निकास, गन्दे पानी की नालियों अथवा पेयजल से वंचित हैं। ये अनधिकृत रूप से भूमि पर कब्जा करने वाले वे बांग्लादेशी हैं जो 1971 में यहाँ आये थे। वे पिछले 30 वर्ष से बिना किसी पहचानपत्र या आज्ञा-पत्र के रह रहे हैं।
वे मतदान के पात्र हैं। राशन कार्ड की सहायता से उन्हें अनाज मिल जाता है। जीवित रहने के लिए भोजन पहचान-पत्र से कहीं अधिक आवश्यक है। उन्हें जहाँ कहीं भोजन मिल जाता है, वहीं अपने तम्बू लगा लेते हैं जो उनके गमन-भवन बन जाते हैं। उनमें बच्चे बड़े होते हैं, तथा जीवित रहने में भागीदार बन जाते हैं। सीमापुरी में जीवित रहने का अर्थ है कूड़े-करकट को खंगालना। वर्ष बीतने के साथ कूड़ा-करकट में से मूल्यवान वस्तुएँ ढूंढना एक कला का रूप धारण कर लिया है। उनके लिये कूड़ा तो सोना है। यह उनकी दैनिक रोटी है तथा सिर के ऊपर की छत ।
कई बार साहेब कूड़े के ढेर में एक रुपया अथवा दस रुपये का नोट पा लेता है। तब अधिक पाने की आशा होती है। कूड़े-करकट का उनके लिए उनके माता-पिता की समझ से अलग अर्थ है। बच्चों के लिए यह आश्चर्य से लिपटा हुआ है, बड़ों के लिए यह जीवित रहने का साधन है।
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सर्दी में एक प्रात:काल लेखिका साहेब को पड़ोस के एक क्लब के कांटेदार बाड़ लगे द्वार के पास खड़ा पाती है। वह दो नवयुवकों को टेनिस खेलते हुए देख रहा है। वे सफेद वस्त्र पहने हुए हैं। साहेब को यह खेल अच्छा लगता है, किन्तु वह इस बाड़ के पीछे खड़े रहकर देखने से ही सन्तुष्ट है। साहेब किसी के त्यागे (फॅके) हुए टेनिस के जूते पहने हुए है जो उसकी रंग उड़ी हुई कमीज तथा निकर पर अजीब लगते हैं। किसी ऐसे व्यक्ति के लिए जो नंगे पैर चला हो, छेद वाला जूता भी एक स्वप्न के सत्य होने जैसा है। किन्तु निस उसकी पहुँच से बाहर है।
इस प्रात:काल साहेब दूध की दुकान की ओर जा रहा है। उसके हाथ में एक स्टील का डिब्बा है। वह एक चाय की दुकान पर काम करता है। उसे 800 रुपये तथा उसके तीने समय का भोजन मिलता है। साहेब अब अपनी मर्जी का मालिक नहीं है। उसके चेहरे से चिन्तामुक्त दिखना लुप्त (गायब) हो गया है। चाय की दुकान में काम करके वह प्रसन्न प्रतीत नहीं होता।
II. मैं कार चलाना चाहता हूँ।”
फिरोजाबाद में लेखिका की मुकेश से भेंट होती है। उसका परिवार चूड़ियाँ बनाने में लीन है किन्तु मुकेश स्वयं अपना स्वामी बनने की जिद्द पर डटा हुआ है। वह घोषण करता है, “मैं एक मोटर-मैकेनिक बनूंगा।” वह कहता है, “मैं कार चलाना सीखेंगा”
फिरोजाबाद अपनी चूड़ियों के लिए प्रसिद्ध है। प्रत्येक दूसरा परिवार चूड़ियाँ बनाने के काम में व्यस्त है। परिवारों ने भट्ठियों के सामने काम करते हुए, शीशे को जोड़ लगाते हुए, स्त्रियों के लिए चूड़ियाँ बनाते हुए कई पीढ़ियाँ बिता दी हैं। उनमें से कोई भी यह नहीं जानता कि मुकेश जैसे छोटे बालक के लिए उच्च तापमान वाली शीशे की भट्ठी पर वायु एवं प्रकाश रहित तंग कोठरी में काम करना अवैध (गैर-कानूनी) है। वे दिन के प्रकाश के पूरे समय कठोर परिश्रम करते रहते हैं, प्रायः अपनी आँखों की चमक खो बैठते हैं। यदि कानून को कठोरता से लागू किया जाये, तो यह मुकेश तथा उस जैसे 20,000 बच्चों को गर्म भट्ठियों से मुक्त कर देगा।
वे बदबूदार तंग गलियों से जो कूड़े-करकट से भरी पड़ी हैं, उन घरों के समीप से गुजरते हुए जाते हैं जो ढहती हुई दीवारों, अस्थिर लटकते हुए दरवाजों एवं खिड़की रहित तंग कोठरियाँ मात्र हैं। यहाँ मानव तथा पशु एक साथ निवास करते हैं। वे आधी निर्मित एक फूहड़ झोपड़ी में पहुँचते हैं। इसके एक भाग में सूखी घास की छत लगी है। एक कमजोर नवयुवती लकड़ी के चूल्हे पर शाम का भोजन बना रही है। वह मुकेश के बड़े भाई की पत्नी है तथा तीन पुरुषों की देखभाल करने वाली है उसका पति, मुकेश तथा उनका पिता। पिता एक निर्धन चूड़ियाँ बनाने वाला है। वर्षों तक कठोर परिश्रम करने के बावजूद, पहले एक दर्जी के रूप में तथा फिर चूड़ियाँ बनाने वाले के रूप में, वह एक मकान को पुनः बनाने तथा अपने दोनों बालकों को विद्यालय भेजने में असमर्थ रहा है। जो कुछ वह उन्हें सिखा पाया है वह वही है जो वह जानता है- चूड़ियाँ बनाने की कला।।
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मुकेश की दादी ने चूड़ियों के शीशों की पालिश करने से उड़ी धूल से अपने पति को अन्धा होते हुए देखा है। वह कहती है कि यह उसका भाग्य है। उसका निहित अर्थ है कि प्रभु प्रदत्त कुटुम्ब रेखा नहीं तोड़ी जा सकती। वे चूड़ी निर्माताओं की जाति में उत्पन्न हुये हैं और उन्होंने विभिन्न रंग की चूड़ियों के अतिरिक्त कुछ अन्य नहीं देखा है। लड़के तथा लड़कियाँ अपने माता-पिता के साथ बैठकर रंगीन शीशे के टुकड़ों को जोड़कर चूड़ियों के वृत्त बनाते हैं। वे अंधेरी झोंपड़ियों में तेल के दीयों की टिमटिमाती हुए लौ की पंक्तियों के आगे काम करते हैं। उनकी आँखें बाहर के प्रकाश की अपेक्षा अंधेरे में अधिक अभ्यस्त हैं। वयस्क होने से पहले ही प्राय: वे कई बार अपनी आँखों की ज्योति खो देते हैं।
फीकी गुलाबी पोशाक पहने हुए एक युवा लड़की सविता एक बुजुर्ग महिला के साथ बैठी है। वह शीशे के टुकड़ों को टांके लगा रही है। उसके हाथ किसी मशीन के चिमटों की भाँति मशीनी रूप से चलते हैं। शायद वह उन चूड़ियों की पवित्रता के विषय में नहीं जानती जिनको बनाने में वह सहायता करती है। उसके पास बैठी स्त्री ने जीवनपर्यन्त एक बार भी भरपेट भोजन का आनन्द नहीं लिया है। उसका पति लहराती हुई दाढ़ी वाला वृद्ध व्यक्ति है। वह चूड़ियों के अतिरिक्त कुछ नहीं जानता। उसने परिवार के निवास हेतु एक मकान बनाया है। उसके सिर पर छत है।
फिरोजाबाद में समय के साथ बहुत कम बदलाव हुआ है। परिवारों के पास खाने को पर्याप्त भोजन नहीं है। उनके पास इतना धन नहीं है कि चूड़ियाँ बनाने के धन्धे को जारी रखने के अतिरिक्त कोई अन्य काम कर सकें। वे उन बिचौलियों के कुचक्र में फैंस गए हैं। जिन्होंने उनके पिता तथा दादा-परदादा को जाल में फँसाया था। वर्षों तक मस्तिष्क को सुन्न कर देने वाले परिश्रम ने उनके पहल करने की सभी भावनाओं तथा स्वप्न देखने की सामर्थ्य को समाप्त कर दिया है। वह किसी सहकारी संस्था में संगठित होने के अनिच्छुक हैं। उन्हें भय है कि पुलिस द्वारा उनको ही अवैध कार्य करने के लिए पकड़ा जायेगा, पीटा जायेगा तथा कारागार में डाल दिया जायेगा। उनके मध्य कोई नेता नहीं है। कोई भी उन्हें वस्तुओं को पृथक रूप से देखने में सहायता नहीं करता। वे सब थके हुए प्रतीत होते हैं। वे गरीबी (निर्धनता), उदासीनता, लालच तथा अन्याय की बातें करते हैं।
दो स्पष्ट संसार दिखाई देते हैं-एक, गरीबी में फँसे परिवार, जो कि बोझा ढो रहे हैं उसे कलंक का, जिस जाति में उन्होंने जन्म लिया है; दूसरे, महाजनों, बिचौलियों, पुलिसवालों, कानून के रखवालों तथा राजनीतिज्ञों का दुष्चक्र। उन्होंने एक साथ मिलकर बच्चे पर इतना भार (सामान) लाद दिया है कि वह इसे नीचे भी नहीं रख सकता वह इसे उतने ही स्वाभाविक रूप से स्वीकार कर लेता है, जैसे कि उसके पिता ने किया था। कोई अन्य काम करने का अर्थ होगा-साहस करना तथा साहस करने का उनके बड़े होने में कोई हिस्सा नहीं है। लेखिका को तब प्रसन्नता होती है जब वह मुकेश में इसकी चमक देखती है जोकि मोटर-मैकेनिक (मिस्त्री) बनना चाहता है।
Conclusion
The summary of “The Lost Spring” highlights how people can create a harmful cycle of oppression and suffering for others, leading to social and economic inequality. Some people enjoy their human rights and identity, while others face fear and punishment due to unfair socioeconomic politics. This affects innocent children the most, who are forced into work or lack basic needs like education, clothing, shelter, and food.
These children often grow up to face similar hardships, creating a cycle of poverty and illiteracy that continues until they believe it’s their destiny. It’s important for students to understand the main ideas in a piece of writing to better grasp its meaning.
FAQs on Class 12 Lost Spring Summary
What is the main message of 'Lost Spring'?
'Lost Spring' discusses how children in poor communities are held back by unfair social and economic systems, preventing them from improving their lives and social status.
What is a brief summary of 'Lost Spring'?
'Lost Spring' is about impoverished children who suffer due to unfair politics and poor living conditions. They lack basic human needs like food, clothes, shelter, and education.
What are the two different worlds in 'Lost Spring'?
The story describes the two worlds that children in poverty experience. One is their life in poverty, facing discrimination due to their low caste. The other is a cycle of exploitation by moneylenders, middlemen, and corrupt officials, hindering their progress in society