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Deep Water Summary In English
William O. Douglas reminisces about a challenging incident from his youth, occurring when he was around ten or eleven years old. Eager to learn how to swim, he visited the Y.M.C.A. pool in Yakima, which had a shallow end just two or three feet deep and a deep end at nine feet. The pool’s depth increased gradually. Douglas, uncomfortable with exposing his skinny legs, used water wings to aid his swimming attempts.
As a young child, Douglas developed a fear of water after a distressing experience at a California beach where the strong waves knocked him down and submerged him, leaving him without air and terrified. His father’s laughter did little to comfort him, as the overwhelming force of the waves instilled a deep-seated terror in him.
This fear resurfaced during his initial visit to the Y.M.C.A. pool. Despite his initial apprehensions, Douglas started to gain confidence by observing and mimicking other boys who used water wings to paddle. After several attempts on different days, he was just starting to feel at ease in the water when an unsettling event occurred.
On a day when he found himself alone at the pool, he waited at the edge for others to arrive. Soon after, a muscular boxer, likely eighteen years old, approached him. The boxer teased Douglas about his thin frame and abruptly threw him into the deep end of the pool. Hitting the water seated, Douglas swallowed water and sank. Despite his fear, he kept his composure and planned his next move. Once his feet touched the bottom, he intended to spring up to the surface and paddle safely to the side of the pool.
The nine feet to the bottom of the pool felt like ninety. His lungs were bursting by the time his feet touched the bottom. When he tried to jump upwards, he couldn’t reach the surface immediately and rose slowly. Only his eyes and nose emerged from the water, not his mouth. He flailed his legs at the water’s surface, swallowing water and choking. He attempted to lift his legs, but they felt like dead weights, pulling him back down.
Underwater, he screamed in terror. Although he was paralyzed, the pounding in his head and his racing heart assured him he was alive. Even after pushing off the bottom with all his might, he remained engulfed in water, unable to move his arms or legs, trembling in fear. He tried to shout for his mother, but no sound came out. As he began to sink for the third time, he stopped struggling.
Then he suddenly relaxed, and darkness overtook his mind, erasing the terror. The panic subsided, and he felt an overwhelming urge to sleep, abandoning all efforts to fight. When he regained consciousness, he found himself vomiting on the poolside. The boy who had thrown him in nonchalantly mentioned he was just joking. Others commented on how he had nearly drowned. Afterward, they helped him to the locker room.
Several hours later, he walked home, weak and shaking. Lying in his bed, he shook and cried, unable to eat that night. The fear lingered for days, and he never returned to the pool, avoiding water whenever possible.
Years later, he encountered the waters of the Cascades and felt compelled to enter. However, the old terror resurfaced, freezing his legs and gripping his heart with icy fear. This fear stayed with him over time, haunting him wherever he went. It spoiled his enjoyment of fishing, canoeing, boating, and swimming.
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He tried every way he could think of to overcome his fear. Eventually, he decided to hire a coach and learn to swim. He practiced at the pool five days a week for an hour each day. His coach used a belt and rope system through a pulley above to keep him secure. He clung to the rope, and they continued like this for several weeks. Every time he crossed the pool, a wave of panic hit him. Whenever the coach loosened the grip on the rope and he dipped underwater, his old fear resurfaced, and his legs would freeze.
After three months, the fear started to lessen. His coach then taught him to submerge his face, breathe out, and lift his head to breathe in. He repeated this hundreds of times, slowly letting go of the panic as he dipped under the water.
Next, the coach had him practice kicking at the pool’s edge for several weeks. Over time, his legs began to relax. Bit by bit, he became a swimmer. Once he mastered each skill, he combined them into a seamless whole. He began practicing in October, and by April, his coach confirmed he could swim and asked him to dive across the pool.
Swimming alone sometimes brought back slight fear, but he could now control it. This continued until July. Still seeking to fully conquer his fear, he went to Lake Wentworth in New Hampshire. There, he dived from a dock at Triggs Island and swam two miles across to Stamp Act Island, using various strokes. Fear struck just once when he saw only the deep water beneath him. He challenged his fear, and it vanished.
He still had some doubts, so he traveled to Tieton, hiked up to Meade Glacier, and camped by Warm Lake. The next day, he swam across the lake and back, yelling joyfully, and the sound echoed off Gilbert Peak. He had finally overcome his fear of water.
This journey taught him the profound impact of facing and defeating great fear. He understood something often only known to those who’ve faced such terror: in facing the fear of death, one finds a stronger desire to live.
Ultimately, he felt free. He could now enjoy hiking and climbing without fear.
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Deep Water Summary In Hindi
विलियम ओ० डगलस बचपन की एक दुर्घटना को याद करता है। यह तब घटित हुई थी जब वह दस अथवा ग्यारह वर्ष का था। उसने तैरना सीखने का निश्चय किया था। याकिमा में वाई०एम०सी०ए० में एक तालाब था, जो कि सुरक्षित था। यह छिछले सिरे पर केवल दो अथवा तीन फुट गहरा था तथा दूसरे सिरे पर नौ फुट गहरा था। गहराई (झुकाव) शनैः शनैः थी। उसने पानी में तैरने के पंखों की एक जोड़ी ली तथा तालाब पर चला गया। वह पानी में नंगे चलने से तथा अपनी अत्यन्त पतली टाँगें दिखाने से घृणा करता था।
जब लेखक तीन या चार वर्ष का था तभी से उसे पानी के प्रति अरुचि (घृणा) हो गई थी। उसके पिता उसे कैलिफोर्निया में समुद्र तट (किनारे) पर ले गए। वे समुद्री झाग पर इकट्ठे खड़े हुए थे। लहरों ने उसे नीचे गिरा दिया तथा उसके ऊपर से बहने लगीं। वह पानी में दफ़न हो गया। वह डर गया। उसके पिता हँसे, किंतु लहरों की अत्यधिक शक्ति ने उसके हृदय में अति तीव्र भय भर दिया।
जब वह पहली बार वाई०एम०सी०ए० के तालाब पर गया तो अप्रिय स्मृतियाँ पुनर्जीवित हो उठीं। बचकाने भय उत्पन्न हो गये। किन्तु शीघ्र ही उसने विश्वास एकत्रित कर लिया। उसने अन्य लड़कों को तैरने के पंखों से पानी को धकेलते हुए देखा। उनकी नकल करके उसने भी सीखने का प्रयास किया।
उसने विभिन्न दिनों पर 2-3 बार ऐसा किया। उसने जल में सहजता (आरामदायक) महसूस करना आरम्भ ही किया था कि यह दुर्घटना घटित हो गई।
जब वह तालाब पर गया, तो वहाँ कोई और नहीं था। अतः वह दूसरों की प्रतीक्षा करने के लिए तालाब के समीप (बगल में) बैठ गया। थोड़ी ही देर में, एक भारी-भरकम लड़का, एक मुक्केबाज़ आया। वह सम्भवतः 18 वर्ष का होगा तथा उसके हाथ-पैरों पर सुन्दर मांसपेशियाँ थीं। उसने लेखक को ‘पतलू’ कहकर पुकारा तथा पूछा कि वह पानी में डुबकी लगाने को कैसे पसन्द करेगा।
उस मुक्केबाज़ लड़के ने डगलस को उठाया तथा गहरे सिरे में फेंक दिया। वह बैठने की स्थिति में पानी से जा टकराया। उसने पानी निगल लिया और तुरन्त पेंदी (नीचे का तल) की ओर चला गया। वह भयभीत हो गया, किन्तु सोचने-विचारने की शक्ति नहीं गॅवाई। उसने एक योजना बनाई। जब उसके पैर पेंदी से टकरायेंगे, तो वह बड़ी छलांग लगायेगा। एक (कार्क) की डाट की भाँति वह तल पर आ जायेगा, इस पर सीधा लेटेगा तथा फिर पानी को धकेलता हुआ तालाब के सिरे तक पहुँच जायेगा।
वे नौ फुट नब्बे फुट से भी अधिक प्रतीत हुए। उसके पेंदी (तली) को छूने से पहले ही, उसके फेफड़े फटने को तैयार थे। जब उसके पैर पेंदी से टकराये तो उसने ऊपर की ओर तगड़ी छलाँग लगाई, किन्तु वह तुरन्त ऊपरी तल तक पहुँचने में असफल रहा। वह धीरे-धीरे ऊपर आया। उसकी आँखें तथा नाक पानी से बाहर आ गये, किन्तु मुँह नहीं आया। उसने पानी के तल पर अपनी टाँगें इधरउधर घुमाई । उसने पानी निगल लिया और उसका गला अवरुद्ध हो (रुक) गया। उसने अपनी टाँगें ऊपर लाने का प्रयत्न किया, किन्तु वे भार की भाँति लटकी रहीं। वह फिर से तालाब की पेंदी की ओर चला गया।
वह पानी के नीचे चीख रहा था क्योंकि भय ने उसे जकड़ लिया था। वह पानी के नीचे शक्तिहीन-सा (पक्षाघात या लकवे से ग्रसित) हो गया था, किन्तु उसके धड़कते हृदय तथा मस्तिष्क ने उसे बताया कि वह अभी भी जीवित था। जब वह पेंदी से टकराया, तो वह अपनी पूरी शक्ति से ऊपर की ओर उछला। इस उछाल से भी कोई अन्तर नहीं आया। पानी अब भी उसके चारों ओर था। उसके हाथ-पैर हिलते ही नहीं थे। वह भय से काँपने लगा। उसने सहायता के लिए पुकारने का प्रयास किया, माँ को पुकारने का, किन्तु कुछ नहीं हुआ। फिर वह ऊपर उठा। उसकी आँखें तथा नाक लगभग पानी से ऊपर थे। उसने साँस लेने की कोशिश की किन्तु उसे पानी मिला। वह तीसरी बार नीचे जाने लगा।
फिर सभी प्रयास समाप्त हो गये तथा वह शान्त हो गया। एक कालिमा उसके मस्तिष्क पर छा गई तथा उसने भय को पोंछकर बाहर निकाल दिया। अब अचानक होने वाला भय नहीं था। वह उनींदा महसूस करने लगा तथा सोना चाहता था। उसने सभी प्रयास छोड़ दिये। वह सब कुछ भूल गया। जब उसकी चेतना वापस लौटी, तो उसने स्वयं को उल्टियाँ करते हुए पेट के बल तालाब के समीप लेटे हुए पाया। जिस लड़के ने उसे पानी के अन्दर फेंका था उसने कहा कि वह तो केवल मज़ाक कर रहा था। किसी अन्य ने कहा कि लड़का तो लगभग मर ही गया था। फिर वे उसे लॉकर वाले कमरे में (वस्त्र बदलने को) ले गये।
कई घंटे उपरान्त वह पैदल चलकर घर गया। वह दुर्बल (कमज़ोर) था तथा काँप रहा था। जब वह बिस्तर पर लेटा तो हिलने तथा चीखने लगा। उस रात वह भोजन नहीं कर सका। कई दिनों तक उसके हृदय में बार-बार भय मँडराता रहा। वह तालाब पर फिर कभी वापस नहीं गया। वह जल से भयभीत हो गया तथा जहाँ तक सम्भव हो इससे बचता था।
कुछ वर्ष उपरान्त उसे जल-प्रपातों के पानी के विषय में ज्ञात हुआ। वह उनमें घुसना चाहता था। जब कभी वह ऐसा करता तो वही भय जिसने उसे तालाब में जकड़ लिया था, पुन: लौट आता। उसकी टाँगें शक्तिहीन हो जाती थीं। एक ठंडा भय उसके हृदय को कसकर पकड़ लेता था। समय बीतते गए लेकिन यह कमी उसके साथ बनी रही। वह जहाँ कहीं जाता, बार-बार आने वाला पानी का भय उसका पीछा करता। इसने उसकी मछली पकड़ने की यात्राओं को बर्बाद कर दिया। इसने उसे डोंगीचालन, नौकायन तथा तैराकी से प्राप्त होने वाली प्रसन्नता से वंचित कर दिया।
अपने भय पर काबू पाने के लिए उसने उस प्रत्येक ढंग का प्रयोग किया जो वह जानता था। अन्त में, उसने एक प्रशिक्षक (सिखाने वाले गुरु) की सेवाएँ लेने और तैरना सीखने का निर्णय लिया। वह एक तालाब पर गया तथा सप्ताह में पाँच दिन, प्रतिदिन एक घंटा, अभ्यास करता। प्रशिक्षक ने उसके गिर्द (चारों ओर) एक पेटी लगाई। पेटी से जुड़ी हुई एक रस्सी च से होकर सिर के ऊपर बँधे तार से होकर जाती थी। वह रस्सी के सिरे को पकड़ लेता था। कई सप्ताह तक इसी तरह चलता रहा। तालाब में प्रत्येक बार भ्रमण के समय थोड़ा-सा भय उसे जकड़ लेता। प्रत्येक बार जब प्रशिक्षक रस्सी पर अपनी पकड़ ढीली करता तथा लेखक पानी के नीचे जाता, तो उसके पुराने भय का कुछ अंश लौट आता और उसकी टाँगें सुन्न हो जातीं।
यह तनाव हल्का (ढीला) होते-होते तीन महीने बीत गये। फिर प्रशिक्षक ने उसे पानी के अंदर चेहरा रखकर सांस छोड़ना (बाहर निकालना) एवं नाक ऊपर को उठाना एवं सांस लेना (भीतर खींचना) सिखाया। उसने यह अभ्यास सैकडों बार दोहराया। उसका सिर इस तरह पानी के अन्दर जाने से उसका कुछ पुराना भय अत्यन्त धीरे-धीरे समाप्त होता गया।
फिर प्रशिक्षक ने उसे तालाब की तरफ के पास से पकड़ा तथा उससे टाँगों से ठोकरें लगवाईं। उसने ऐसा कई सप्ताह तक किया। धीरे-धीरे उसकी टाँगें आराम महसूस करने लगीं। इस प्रकार टुकड़े-टुकड़े में उसने उसे एक तैराक बनाया। जब उसने उसे प्रत्येक भाग में पूर्णतया निपुण कर दिया तो उन्हें साथ रखकर एक समन्वित पूर्ण रूप निर्मित किया। उसने अक्तूबर में अभ्यास करना आरम्भ किया था तथा अप्रैल में प्रशिक्षक ने उसे बताया कि वह तैर सकता था। उसने लेखक को गोता मारने तथा पूरे तालाब की लम्बाई में तैरने को कहा। उसने रेंगने वाले प्रहार से आरम्भ किया।
जब वह तालाब में अकेला तैरता तो पुराने भय के छोटे-छोटे अवशेष लौट आते किन्तु अब वह अपने भय को दबा सकता था। ऐसा जुलाई तक चलता रहा। वह अब भी सन्तुष्ट नहीं था। अत: वह न्यू हैम्पशायर में लेक वेन्टवर्थ में गया। वहाँ उसने ट्रिग्स द्वीप में एक गोदी से गोता लगाया। वह झील के पार स्टाम्प एक्ट द्वीप तक दो मील तैरकर गया। वह रेंगने के प्रहार, छाती के प्रहार, पक्ष के प्रहार तथा पीठ के प्रहार से तैरा। भयं केवल एक ही बार लौटा। जब वह झील के मध्य में था, तो उसने अपना सिर पानी के नीचे किया तथा पेंदीविहीन जल के अतिरिक्त कुछ नहीं देखा। उसने भय से पूछा कि वह इसका क्या कर सकता था तथा यह दूर भाग गया।
कुछ सन्देह अब भी शेष थे। अतः वह टाइटन नदी के ऊपर को कॉनरेड चरागाह कानरैड पद-मार्ग से ऊपर मीड हिमनद तक गया। उसने वार्म लेक के पास ऊँची चरागाहों में शिविर लगाया। अगली प्रातः उसने झील में गोता लगाया तथा दूसरे तट तक तथा पुनः वापस तैरकर गया। वह प्रसन्नता से चिल्लाया, तथा गिल्बर्ट चोटी से प्रतिध्वनि टकराकर लौट आई। उसने पानी से अपने भय पर विजय प्राप्त कर ली थी।
इसे अनुभव का उसके लिए एक गहरा अर्थ था। लोग जिन्होंने कठोर भय को जाना है तथा इसे विजित किया है, केवल वे ही इसको समझ सकते हैं। मृत्यु में शान्ति है। मृत्यु के भय में ही अत्यधिक भय है। रूजवेल्ट को यह ज्ञात था। उसने कहा था, “जिससे हमें डरना है वह तो डर स्वयं ही है।” डगलस ने मरने की अनुभूति तथा जो भय वह उत्पन्न कर सकता था, इन दोनों का ही अनुभव किया था। जीवित रहने की इच्छा किसी प्रकार से तीव्रता में विकसित हो गई।
अन्त में डगलस ने स्वतन्त्र (मुक्त) महसूस किया। वह पर्वतों के पथ पर चलने के लिए तथा शिखरों (चोटियों) पर चढ़ने को एवं भय को अनदेखा करने के लिए स्वतन्त्र था।
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Conclusion of Deep Water Class 12
The summary of “Deep Water” for Class 12 illustrates how bravery can overcome fear. Life may present us with many reasons to be afraid, but these fears shouldn’t define us, particularly when it comes to the fear of death. This fear might stop us from enjoying many beautiful experiences. William Douglas shares his own story about overcoming his fear of water in this narrative. He refused to let this fear dominate him, and through persistent effort and strong will, he eventually conquered it.
FAQs on Deep Water Class 12 Summary
What is the main idea of the chapter 'Deep Water'?
'Deep Water' explores how fear affects one's life and shows that with determination and effort, anyone can conquer their fears.
Why does William Douglas mention Roosevelt in the final part of 'Deep Water'?
At the chapter's conclusion, William Douglas references Roosevelt to highlight the significance of confronting fears. He suggests that to overcome fear, one must be persistent and determined.
How did Douglas conquer his fear of water?
Douglas faced a scary situation while trying to teach himself how to swim. He sought help from a swimming instructor and practiced swimming alone in pools to see if he still felt fearful. Noticing some lingering fear, he swam in two different lakes until he was sure he was no longer afraid of water.