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NCERT Solutions for Class 12 Hindi Aroh Chapter 6 उषा

 

NCERT Solutions for Class 12 Hindi Aroh Chapter 6 उषा

पाठ्यपुस्तक के प्रश्न-अभ्यास

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    कविता के साथ

    प्रश्न 1.
    कविता के किन उपमानों को देखकर यह कहा जा सकता है कि उषा कविता गाँव की सुबह का गतिशील शब्द चित्र है? (CBSE-2009, 2011, 2013, 2014)
    अथवा
    ‘शमशेर की कविता गाँव की सुबह का जीवंत चित्रण है।’-पुष्टि कीजिए। (CBSE-2016)
    उत्तर:
    कवि ने गाँव की सुबह का सुंदर चित्रण करने के लिए गतिशील बिंब-योजना की है। भोर के समय आकाश नीले शंख की तरह पवित्र लगता है। उसे राख से लिपे चौके के समान बताया गया है जो सुबह की नमी के कारण गीला लगता है। फिर वह लाल केसर से धोए हुए सिल-सा लगता है। कवि दूसरी उपमा स्लेट पर लाल खड़िया मलने से देता है। ये सारे उपमान ग्रामीण परिवेश से संबंधित हैं। आकाश के नीलेपन में जब सूर्य प्रकट होता है तो ऐसा लगता है जैसे नीले जल में किसी युवती का गोरा शरीर झिलमिला रहा है। सूर्य के उदय होते ही उषा का जादू समाप्त हो जाता है। ये सभी दृश्य एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। इनमें गतिशीलता है।

    प्रश्न 2.
    भोर का नभ
    राख से लीपा हुआ चौका
    (अभी गीला पड़ा है)
    नई कविता में कोष्ठक, विराम चिह्नों और पंक्तियों के बीच का स्थान भी कविता को अर्थ देता है। उपर्युक्त पंक्तियों में कोष्ठक से कविता में क्या विशेष अर्थ पैदा हुआ है? समझाइए।
    उत्तर:
    नई कविता के लगभग सभी कवियों ने सदा कुछ विशेष कहना चाहा है अथवा कविता की विषयवस्तु को नए ढंग से प्रस्तुत करना चाहा है। उन्होंने इसके लिए कोष्ठक, विराम चिह्नों और पंक्तियों के बीच स्थान छोड़ दिया है। जो कुछ उन्होंने इसके माध्यम से कहा है, कविता उससे नए अर्थ देती है। उपरोक्त पंक्तियों में यद्यपि सुबह के आकाश को चौका जैसा माना है और यदि इसके कोष्ठक में दी गई पंक्ति को देखा जाए तो तब चौका जो अभी-अभी राख से लीपा है, उसका रंग मटमैला है। इसी तरह सुबह का आकाश भी दिखाई देता है।

    अपनी रचना

    अपने परिवेश के उपमानों का प्रयोग करते हुए सूर्योदय और सूर्यास्त का शब्दचित्र खींचिए।
    उत्तर:
    सूर्योदय सूर्यास्त
    सुबह का आकाश गोधूलि की वेला में
    बहुत कुछ समुद्री जल जैसा सब कुछ धुंधला-सा हो जाता है।
    सुबह आकाश कुछ कुछ ऐसा जैसे कि
    मानो नए बोर्ड पर तवे का उत्तरार्ध
    लिखे नए शब्दों जैसा बहुत कुछ ऐसा
    और… जैसा कि काले अच्छर
    धीरे-धीरे यह आवरण हट रहा है। धीरे-धीरे सारा परिवेश
    तवे की तरह सुर्ख लाल गहन अंधेरे में जा रहा है।
    सूर्य उदय होने को है। अब सूर्यास्त होगा।

    आपसदारी

    सूर्योदय का वर्णन लगभग सभी बड़े कवियों ने किया है। प्रसाद की कविता ‘बीती विभावरी जाग री’ और अज्ञेय की ‘बावरा अहेरी’ की पंक्तियाँ आगे बॉक्स में दी जा रही हैं। ‘उषा’ कविता के समानांतर इन कविताओं को पढ़ते हुए नीचे दिए गए बिंदुओं पर तीनों कविताओं का विश्लेषण कीजिए और यह भी बताइए कि कौन-सी कविता आपको ज्यादा अच्छी लगी और क्यों?

    शब्द चयन

    उपमान परिवेश
    बीती विभावरी जाग री!
    अंबर पनघट में डुबो रही
    तारा-घट ऊषा नागरी।
    खग-कुल कुल-कुल-सा बोल रहा,
    किसलय का अंचल डोल रहा,
    लो यह लतिका भी भर लाई
    मधु मुकुल नवल रस गागरी।
    अधरों में राग अमंद पिए,
    अलकों में मलयज बंद किए
    तू अब तक सोई है आली}
    आँखों में भरे विहाग री
    – जयशंकर प्रसाद
    भोर का बावरा अहेरी
    पहले बिछाता है आलोक की
    लाल-लाल कनियाँ पर जब खींचता है जाल को
    बाँध लेता है सभी को साथः
    छोटी-छोटी चिड़ियाँ, मॅझोले परेवे, बड़े-बड़े पंखी
    डैनों वाले डील वाले डौल के बेडौल
    उड़ने जहाज़,
    कलस-तिसूल वाले मंदिर-शिखर से ले
    तारघर की नाटी मोटी चिपटी गोल धुस्सों वाली उपयोग-सुंदरी
    बेपनाह काया कोः
    गोधूली की धूल को, मोटरों के धुएँ को भी
    पार्क के किनारे पुष्पिताग्र कर्णिकार की आलोक-खची तन्वि
    रूप-रेखा को
    और दूर कचरा जलानेवाली कल की उदंड चिमनियों को, जो
    धुआँ यों उगलती हैं मानो उसी मात्र से अहेरी
    को हरा देंगी।
    – सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’

    उत्तर:
    सभी कविताओं को कवियों ने नए उपमान के द्वारा प्रस्तुत किया है। यदि प्रसाद जी ने पनघट, नागरी, खग, लतिका, नवल रस विहाग आदि उपमानों के माध्यम से प्रात:काल का वर्णन किया है तो अज्ञेय ने भोर को बावरा अहेरी, मंदिर, नाटी मोटी और चपटी गोल धूसे, गोधूली आदि उपमानों के द्वारा प्रस्तुत किया है। शमशेर बहादुर सिंह ने प्रात:काल के लिए नीले शंख, काला सिल, चौका, स्लेट, युवती आदि उपमानों का स्वाभाविक प्रयोग किया है। उपमानों की तरह तीनों कवियों की शब्द योजना बिलकुल सटीक और सार्थक है।

    तीनों ही कवियों ने साधारण बोलचाल के शब्दों का सुंदर एवं स्वाभाविक प्रयोग किया है। तीनों कवियों ने सूर्योदय का मनोहारी चित्रण किया है। हमें शमशेर बहादुर सिंह द्वारा रचित ‘उषा’ शीर्षक की कविता सबसे अच्छी लगती है। कारण यही है कि ‘बावरी अहेरी’ और ‘बीती विभावरी जाग री’ शीर्षक कविताएँ उपमानों, शब्द योजना की दृष्टि से ‘उषा’ कविता की अपेक्षा कठिन प्रतीत होती है। ‘उषा’ कविता आम पाठक की समझ में शीघ्र आ जाती है।

    अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

    प्रश्न 1.
    कवि को सुबह का आकाश मटमैला क्यों दिखाई देता है?
    उत्तर:
    कवि ने सुबह के आकाश के लिए राख से लिपे हुए चौके का उपमान दिया है। जिस प्रकार गीला चौका मटमैला और साफ़ होता है।

    प्रश्न 2.
    कवि ने किस जादू के टूटने का वर्णन किया है?
    उत्तर:
    कवि ने नए-नए उपमानों के द्वारा सूर्योदय का सुंदर वर्णन किया है। ये उपमान सूर्य के उदय होने में सहायक हैं। कवि ने इनका प्रयोग प्रगतिशीलता के लिए किया है। सूर्योदय होते ही यह जादू टूट जाता है।

    प्रश्न 3.
    निम्नलिखित काव्यांश का भाव-सौंदर्य बताइए –
    बहुत काली सिर जरा से लाल केसर से
    कि जैसे धुल गई हो।
    उत्तर:
    कवि कहता है कि जिस प्रकार ज्यादा काली सिर अर्थात् पत्थर पर थोड़ा-सा केसर डाल देने से वह धुल जाती है अर्थात् उसका कालापन खत्म हो जाता है, ठीक उसी प्रकार काली सिर को किरण रूपी केसर धो देता है अर्थात् सूर्योदय होते ही हर वस्तु चमकने लगती है।

    प्रश्न 4.
    ‘उषा’ कविता के आधार पर सूर्योदय से ठीक पहले के प्राकृतिक दृश्यों का चित्रण कीजिए।
    उत्तर:
    कवि को सुबह का आकाश ऐसा लगता है कि मानो चौका राख से लीपा गया हो तथा वह अभी गीला हो। जिस तरह गीला चौका स्वच्छ होता है, उसी प्रकार सुबह का आकाश भी स्वच्छ होता है, उसमें प्रदूषण नहीं होता।

    प्रश्न 5.
    ‘उषा’ कविता में भोर के नभ की तुलना किससे की गई है और क्यों ?
    उत्तर:
    ‘उषा’ कविता में प्रात:कालीन नभ की तुलना राख से लीपे गए गीले चौके से की है। इस समय आकाश नम तथ धुंधला होता है। इसका रंग राख से लिपे चूल्हे जैसा मटमैला होता है। जिस प्रकार चूल्हा चौका सूखकर साफ़ हो जाता है, उसी प्रकार कुछ देर बाद आकाश भी स्वच्छ एवं निर्मल हो जाता है।

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