Table of Contents
A Game of Chance Summary In English
The Eid fair lasted many days in Rasheed’s village every year. Tradesmen sold all kinds of goods there. Rasheed’s uncle took him and Bhaiya (a domestic help), to the fair. A few of his uncle’s friends met him. They wished him to spend some time with them.
Uncle asked Rasheed and Bhaiya to look around the fair in his absence. He warned them neither to buy anything nor to go too far. The uncle knew that there were many shop-keepers in the fair who cheated the gullible. Rasheed and Nanoo reached the Lucky Shop. The shop was called Lucky Shop because the owner of the shop wanted everybody to pay 50 paise and try his luck.
An old man won a beautiful clock. He sold the clock back to the shopkeeper for 15 rupees. He went away highly pleased. A boy won a comb, a fountain pen, a wrist watch and a table lamp. The boy was happy. He had returned the items and had received a good deal of cash.
Bhaiya encouraged Rasheed to try his luck. He played many games and lost all his money. Both of them returned to the place where Rasheed’s uncle had left them. Rasheed was very upset. In the hope of winning a big prize, he had lost all his money.
Rasheed’s uncle returned soon after. Rasheed was looking upset. Bhaiya told the uncle what had happened. Rasheed’s uncle smiled and patted him. He bought a beautiful umbrella, biscuits, sweets and some other gifts for Rasheed. Then they returned home.
Rasheed’s uncle told him that the lucky shop man had played a trick on him. He said that the old man and the boy who won costly things were the friends of the shopkeeper. He advised Rasheed to forget about the incident and his foolishness.
A Game of Chance Summary In Hindi
रशीद के गाँव में प्रति वर्ष कई दिनों तक ईद का मेला लगता था। वहाँ पर व्यापारी सभी प्रकार का सामान बेचते थे। रशीद का चाचा, उसे और भय्या (घरेलू नौकर) को मेले में ले गया। उसके चाचा के कुछ मित्र उससे मिले। वे चाहते थे कि वह (चाचा) उनके साथ कुछ समय बिताए।
चाचा ने रशीद और भय्या को उसकी अनुपस्थिति में मेले को घूम कर देखने के लिए कहा। उसने उन्हें सचेत किया कि न कोई चीज खरीदें और न ही अधिक दूर जाएँ। चाचा जानते थे कि मेले में बहुत से ऐसे दुकानदार है। जो विश्वासी लोगों को ठगते हैं। रशीद और भय्या ‘भाग्य आजमाओ’ नामक दुकान पर पहुँच गए। इस दुकान को ‘भाग्य आजमाओ’ दुकान कहते थे क्योंकि दुकान का मालिक चाहता था कि प्रत्येक व्यक्ति 50 पैसे देकर अपना भाग्य आजमाए।
एक वृद्ध पुरुष ने एक सुन्दर घड़ी जीती। उसने घड़ी को दुकानदार के लिए पंद्रह रुपये में वापस बेच दिया। वह अत्यधिक प्रसन्न होकर लौट गया। एक लड़के ने एक कंघा, एक फाऊंटेन पेन, एक कलाई वाली घड़ी और एक टेबल लैम्प जीता। लड़का प्रसन्न था। उसने सभी चीजों को लौटा दिया था और काफी धनराशि प्राप्त कर ली थी।
भय्या ने रशीद को अपना भाग्य आजमाने के लिए प्रोत्साहित किया। उसने कई बार अपना भाग्य आजमाया और अपना समूचा धन आँवा दिया। वे दोनों उस स्थान पर लौट गए जहाँ रशीद का चाचा उन्हें छोड़ गया था। रशीद बड़ा परेशान था। कोई बड़ा इनाम जीतने के चक्कर में वह अपना सारा धन गंवा चुका था।
थोड़ी देर बाद, रशीद का चाचा लौट आया। रशीद परेशान नजर आ रहा था। भय्या ने चाचा को समूची घटना बताई। रशीद के चाचा ने हँस कर रशीद की पीठ थपथपाई। उसने रशीद के लिए एक सुन्दर छतरी, बिस्कुट, मिठाइयाँ और कुछ अन्य उपहार खरीदे। तब वे घर लौट गए।
रशीद के चाचा ने उसे बताया कि ‘भाग्य आजमाओ’ दुकान के मालिक ने उसके साथ चाल खेली थी। उसने बताया कि महँगे इनाम जीतने बाला बुढा और वह लड़का वास्तव में दुकानदार के मित्र थे। उसने रशीद को सलाह दी कि उस घटना और उस मूर्खता के बारे में भूल जाए।